SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबीस तीर्थंकरों के अन्वयार्थक नाम रखने का तात्पर्य प्रभु का नाम अजित रखा। (२) संभवनाप-जिनमें चौतीस अतिशयरूपी गुण विशेषप्रकार से संभव है, अथवा जिनकी स्तुति करने से 'शं' अर्थात् सुख प्राप्त होता है। इसमें शपोः सः ॥८१२६०॥ सूत्र से प्राकृत-नियम के अनुमार शंभव के बदले संभवरूप होता है। यह सामान्य अर्थ है और विशेष अर्थ यह है-भगवान जब गर्भ में आये थे, तब देश में आशा से अधिक अन्न पैदा होना संभव हुआ, इसलिए उनका नाम संभव रखा । (४) अमिनन्दनस्वामी-देवन्द्रा ने जिनका अभिनदन किया है तथा प्रभु जब गर्भ में आये थे, तब इन्द्र आदि ने बारबार माता को अभिनन्दन दिया था, इस कारण उनका नाम अभिनंदन रखा । (५) सुमतिनाथ सुमति का अर्थ है -जिसकी सुन्दरवुद्धि हो । भगवान् जब माता के गर्भ में थे, तब माता को सुन्दर निश्चय क्र ने वाली मति-बुद्धि प्रगट हुई थी, अत: उनका नाम सुमति रखा । (६) पद्मप्रम निष्पकता-गुण की अपेक्षा से पद्म के समान कान्ति वाले होने से पद्मप्रभ और भगवान जब गर्भ में थे, तब माता को पद्म-(कमल) की शय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था, जिसे देवता ने पूर्ण किया था तथा प्रभु के शरीर की कान्ति पद्म-(कमल) के समान लाल होने से पदमप्रम नाम रखा । (७) सुपार्श्वनाथ शरीर का नार्वभःग जिमका सुन्दर है, उमे मुपाश्वं-(नाथ) कहते हैं । तथा गर्भ में थे, तब माता के भी पाम में सुन्दर शरीर था इसलिए उनका नाम सुपार्श्व रखा । (८) चन्द्रप्रम-चन्द्र की किरणों के समान शान्त लेश्या वाली जिगकी प्रभा है, वह चन्द्रप्रभ है ; तथा गर्भ के समय माता को चन्द्रपान करने का दोहद उत्पन्न हुआ था और भगवान् के शरीर की प्रभा चन्द्र-समान उज्ज्वल थी इसलिए भगवान् का नाम 'चन्द्रम' रखा था। (E) सुविधिनाव-सु अर्थात् सुन्दर और विधि अर्थात् सब विषयों में कुशलता वाले सुविधिनाथ भगवान थे। प्रभु जब गर्भ में आये, तब से माता को सभी विषयों में कुशलता प्राप्त हुई थी, इसमें प्रभ का नाम सविधिनाथ रखा तथा इन के दांत फूल को कलियों के समान होने से दूसरा नाम पुष्पदंत मी था। (१०) शीतलनाथ-सभी जीवों के सताप को हरण करके शीतलता प्रदान करने वाले होने मे शीतलनाथ तथा प्रभु गर्भ में थे, तब पिता को पहले से पित्तदाह हो रहा था, जो किसी भी उपाय मे शान्त न होता था; परन्तु गर्भ के प्रभाव से माता के हस्तस्पर्श गे वह शान्त हो गया, इमलिए उनका नाम शीतलनाथ रखा गया था (१) श्रेयांस नाथ -सारे जगत् में प्रशस्त अथवा श्रेयस्कर भुजाएं आदि होने से श्रेयाय कहा । तथा प्रभु गर्भ मे थे, तब किसी के भी उपयोग न आई, देवाधिष्ठित शय्या के सर्वप्रथम उपयोग का श्रेय माता को प्राप्त हा था, इससे उनका नाम अं यास रखा (१२) वासुपूज्यस्वामी-धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, प्रत्यय और प्रभास ऐम आठ वमु जाति के देव हैं, उनके पूज्य होने से वसुपूज्य तथा भगवान् गर्भ में थे, तब से वसु यानी हिरण्य (सोने) से इन्द्र ने राजकुल की पूजा को थी, इस कारण वासुपूज्य अथवा वसुपूज्य राजा के पुत्र होने वासुपूज्य कहलाए। ( ३) विमलनाथ जिसका मल चला गया है, उसे विमल कहते हैं। अथवा ज्ञान-दर्शन आदि गुणों से जो निर्मल है, वह विमल होता है तथा प्रभु गर्भ में आए तब उनके प्रभव स माता की मति और शरीर निर्मल होने से भगवान् का नाम विमल रखा (१४) अनन्तनाप-- अनन्त कर्मों पर विजय पाने वाले अथवा अनन्त ज्ञान-दर्शन आदि गुणों से विजयवान होने से अनन्तजित कहलाते हैं ; तथा जब प्रभु गर्भ में थे, तब माता ने अनन्त रत्नमाला देखी थी अथवा आकाश में अन्तरहित महाचक्र देखा था ; जो तीनों जगत में विजयो बनाता है, इस कारण अनन्तजित् का सक्षिप्त नाम अनन्त रखा। भीमसेन को जैसे भीम हा जाना है, वैसे ही अनन्तजित् को अनन्त कहा जाने लगा। (१५) धर्मनाथ-दुर्गति में पड़ते हुए जीवों को जो धारण करता है, वह धर्म है और भगवान् जब गर्भ में आये थे, तब से माता दानादि धर्म में तत्पर बनी, इससे उनका नाम 'धर्मनाथ' रखा (१६) शान्तिनाप
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy