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________________ योगशास्त्र: प्रथम प्रकाश अर्थ जैसे चिरकाल से इकट्ठी की हुई लकड़ियों को प्रचंड अग्नि एक बाण में जला देती है। वैसे ही अनेकानेक भवों के चिरसंचित पापों को भी योग क्षणभर में क्षय कर देता है। योग का दूसरा फल भी बताते हैं 'कफविगुण्मलामशं - सवौषधि-महर्द्धयः । सम्भिन्नस्रोतोलब्धिश्च, यौगंताण्डवडम्बरम् ॥८॥' अर्थ योगो को कफ, श्लेष्म, विष्ठा, स्पर्श आदि सभी औषधिमय महासम्पदाएँ (प्रभावशाली) तभा संभिन्नस्रोतलब्धि (किसी भी एक इन्द्रिय से सारी इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान हो जाने की शक्ति) प्राप्त होना योगजनित अभ्यास का ही चमत्कार है। व्याख्या योगी के कफ, श्लेष्म, विष्ठा, कान का मैल, दांत का मैल, आँख और जीभ का मैल, हाय आदि का गणं, विष्ठा, मूत्र, केश नख आदि कथित या अकथित सभी पदार्थ योग के प्रभाव से औपधिरूप बन जाते हैं। वे औपधि का काम करते हैं । जो काम औषधियाँ करती है, वही काम कफादि कर सकते है। इतना ही नहीं; योग से अणिमादि संभिन्नस्रोत आदि लब्धियाँ (शक्तियाँ) भी प्राप्त होती हैं । यह योग का ही प्रभाव था कि सनत्कुमार जैसे योगी को अपने योग-प्रभाव से कफविन्दुओं द्वारा सब रोग मिटाने की शक्ति प्राप्त हुई । नीचे हम सनत्कुमार चक्रवर्ती का दृष्टान्त दे रहे हैं :-- सनतकुमार चक्रवर्ती को कथा हस्तिनापुर नगर में पटखण्डाधिपति सनत्कुमार नामक चौथा चक्रवर्ती राज्य करता था । एक बार सुधर्मा नाम की देवसभा में इन्द्र महाराज ने विस्मत होकर उसकी अप्रतिम रूपसम्पदा की प्रशंसा की-"कृरुवश-शिरोमणि सनत्कुमार चक्रवर्ती का जिस प्रकार का रूप है, वसा आज देवलोक में या मनुष्यलोक में किसी का भी नहीं है।" इस प्रकार की रूप-प्रशंमा पर विश्वास न करके विजय और वैजयन्त नाम के दो देव सनत्कुमार की परीक्षा करने के लिए मर्त्यलोक में आए । उन दोनों देवों ने यहाँ आ कर ब्राह्मण का रूप बनाया और सनत्कुमार के रूप को देखने के लिये उसके राजमहल के द्वार पर द्वारपाल के पास आए । सनकुमार भी उस समय स्नान करने की तैयारी में था। सभी पोशाक खोल कर वह केवल एक कटिवस्त्र पहने हुए तेल मालिश करवा रहा था। द्वारपाल ने दरवाजे पर खडे दी ब्राह्मणों के आगमन के बारे में सनत्कुमार चक्रवर्ती से निवेदन किया। अतः न्यायसम्पन्न चक्रवर्ती ने उसी समय उनका प्रवेश कराया। सनत्कुमार को देख कर विस्मय से आँखे तरेरते हुए वे दोनों देव सिर हिलाते हुए विचार करने लगे- अहो ! अष्टमी की रात्रि के चन्द्र-सदृश इसका ललाट है, कान तक पहुंचे हुए दो नेत्र हैं, नील-कमल को मात करने वाली इसको शरीर-कान्ति है ? पक्के बिम्बफल के समान कान्तिमय दो ओठ हैं, सीप के समान दो कान हैं, पांचजन्य शंख से भी श्रेष्ठ इसकी गर्दन है, हाथी की सूड को मात करने वाले दो हाथ हैं, मेरुपर्वत की शोभा को भी हरण करने वाला इसका
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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