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________________ योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश सुख के प्राप्त होने पर उनमें गाढ़ आसक्ति (राग) रख कर उनका कभी वियोग न हो, बार-बार संयोग मिलता जाय ; इस प्रकार की अभिलाषा करना । ( ४ ) इन्द्र, चक्रवर्ती आदि के वैभव, रूप अथवा सुख आदि की प्रार्थनारूप निदान करना अथवा अदृष्ट, अश्रुत या अज्ञात वस्तु की प्राप्ति के लिए छटपटाना तथा उसका अधम चिन्तन करते हुए निदान करना । ये चारों प्रकार के आतंध्यान राग, द्वेष, मोह और अज्ञान से युक्त जीवों को होते हैं। आतंध्यान जन्ममरण के चक्ररूप संसार को बढ़ाने वाला और तिर्यंचगति में ले जाने वाला है । २७२ रौद्रध्यान - रौद्र का अर्थ भयंकर है । जो भयकर दुर्भाव या भयंकर कर्म दूसरों को रुलाने और दुःखी करने का कारण है, उसे रौद्रध्यान कहते हैं । रौद्रध्यान भी चार प्रकार का है- ( १ ) हिंसानुबन्धी, (२) मृषानुबन्धी, (३) स्तेयानुबन्धी और (४) संरक्षणानुबन्धी। जीवों का वध करने, बन्धन में डालने, जलाने, मारने-पीटने तोड़-फोड़, दंगे आदि करने का या इसी प्रकार का हिंसाविषयक षड्यंत्र मन में रचना, कोई ऐसी हिंसक योजना मन में बनाना, क्रूरतापूर्वक पूर्वोक्त बातों का चिन्तन करना; प्रथम हिसानुबंधी रौद्रध्यान है । ऐसा रौद्रध्यानी अत्यन्त क्रूर, अतिक्रोधी, निर्दयचित्त एवं अधमपरिणामी होता है । ( आ ) किसी दूसरे पर झूठा आरोप ( कलंक) लगाना, किसी को चकमा देने, अपने मायाजाल में फसाने, धोखा देने, झूठ बोलने, दूसरे की चुगली खाने, वादा भंग करने, प्रतिज्ञा तोड़ने, झूठा प्रपच रचने आदि की उधेड़बुन या खटपट में लगा रहना, इसी प्रकार का रात-दिन चिन्तन करना मृषानुबन्धी नामक दूसरा रौद्रध्यान है । ऐसा रौद्रध्यानकर्ता मायावी, धोखेबाज व गुप्त पापकर्मा होता है । (इ) तीव्र लोभ एवं तृष्णा से व्याकुल हो कर दूसरों का धन हड़पने, छीनने, दूसरे की जमीन-जायदाद अपने कब्जे में करने, चोरी करने, डाका डालने, लूटखसोट करने, अधिक पैसा प्राप्त हो, इस प्रकार की अनैतिक तरकीबें सोचने या इस प्रकार के नये-नये चोरी के नुस्खे अजमाने के चिन्तन में डबा रहना; तीसरा स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान है । ऐसा व्यक्ति भी रपरिणामी, अतिलोभी, द्रव्यहरण में दत्तचित्त एवं परलोक में पाप के परिणाम से निःशंक होता है । (ई) शब्दादि विषयों या साधनों तथा धन के हरण की प्रतिक्षण शका से ग्रस्त हो कर धन कैसे जमा रहे ; सरकार, हिस्सेदार या अन्य लोगों को चकमा दे कर कैसे धन या साघनों की रक्षा की जाय ? इस प्रकार की चिन्ता में अनिश मग्न व्यक्ति संरक्षणानुवन्धी रौद्रध्यानी है । ऐसा व्यक्ति धन ले जाने या खर्च कर देने वाले व्यक्ति को मार डालने तक का क्रूर विचार कर लेता है । ये चारों प्रकार के रौद्रध्यान, राग, द्वेष और मोह के विकार से ग्रस्त जीव को होते है, ये संसारवृद्धि करने वाले और नरक में ले जाने वाले हैं। यह आतंरौद्रध्यानरूप अपध्यान अनर्थदण्ड का प्रथम भेद है । पापमय या हिंसादिवर्द्धक प्रवृत्ति का उपदेश, प्रेरणा या आदेश देना पापकर्मोपदेश नामक दूसरा अनर्थदण्ड है। हिंसा के उपकरण - चाकू, तलवार, छुरा, शस्त्र, अस्त्र आदि किसी को देना, अथवा किसी अनाड़ी या अज्ञानी के हाथ में ये हिंसा के उत्पादक हथियार दे देना, हिस्रप्रदान नामक तीसरा अनर्थदण्ड है । स्त्रियों के नृत्य, गीत, कामकथा आदि कामोत्तेजक रागादिविकारवर्द्धक प्रमाद का सेवन करना चौथा अनर्थदण्ड है । शरीर, कुटुम्ब आदि किसी के लिए कोई जरूरी सावद्यकार्य आरम्भादि करना पड़े या किसी विशेषकारणवश माश्रवसेवन से प्राणी सप्रयोजन दंडित हो, वहाँ अर्थदण्ड है । किन्तु जिस आश्रवसेवन से कोई भी प्रयोजन सिद्ध न होता हो; वह अर्थदण्ड का प्रतिपक्षीरूप अनर्थदण्ड है । उसका त्याग करना ही अनर्थदण्डविरमणव्रत नामक तीसरा गुणव्रत है । कहा भी है- जो इन्द्रियों या स्वजनादि के निमित्त से सावा
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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