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________________ मांसाहार से होने वाले दोष २५ मार्ग, समस्त आपदाओं के स्थान, अपकीर्ति कराने वाले, दुर्जनों के द्वारा सेव्य एवं सर्वगुणों द्वारा निन्दित मदिरा का श्रावक को सदैव त्याग करना चाहिए। अब मांसाहार से होने वाले दोषों का वर्णन करते हैं चिखादिषति यो मांसं, प्राणि प्राणापहारतः । उन्मूलयत्यसौ मूलं, दयाख्यं धर्मशाखिनः ॥ ८॥ अर्थ प्राणियों के प्राणों का नाश किये बिना मांस मिलना सम्भव नहीं है। और जो पुरुष ऐसा मांस खाना चाहता है, वह धर्मरूपी वृक्ष के दयारूपी मूल को उखाड़ डालता है। मांस खाने वाले भी प्राणिदया कर सकते हैं ; इस प्रकार कहने वाले को समझाते हैं अश्नीयन् सदा मांसं, दयां यो हि चिकोर्षति । ज्वलति ज्वलने वल्ली स रोपयितु मिच्छति ॥१९॥ अर्थ जो सदा मांस खाता हुआ, दया करना चाहता है, वह जलती हुई आग में बेल रोपना चाहता है। ऐसे मांसभक्षियों के हृदय में दया का होना कठिन है। व्याख्या यहाँ शंका प्रस्तुत की जाती है कि प्राणी का घान अलग है. और मांस-भक्षण अलग चीज है : फिर मांसभक्षक को प्राणी के प्राण-हरण का पाप कैसे लग सकता है ? इगके उत्तर में कहते हैं -'भक्षक भी घातक (हिंसक) ही है, इसी बात का समर्थन करते हैं हन्ता पलस्य विक्रेता संस्कर्ता भक्षकस्तथा। क्रेताऽनुमन्ता दाता च घातका एव यन्मनुः ॥२०॥ अर्थ शस्त्रादि से घात करने वाला, मांस बेचने वाला, मांस पकाने वाला, मांस खाने वाला, मांस का खरीददार, उसका अनुमोदन करने वाला और मांस का दाता अथवा यजमान, ये सभी प्रत्यक्ष या परोक्षरूप (परम्परा) से जीव के घातक (हिंसक) ही हैं। मनु ने मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के ५१ वें श्लोक में यही बात कही है अनुमन्ता विशसिता, निहन्ता क्रयविक्रयी। संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः ॥२१॥ __ अर्थ मांस खाने का अनुमोदन करने वाला, प्राणी का वध करने वाला, अंग-अंग काट कर विभाग करने वाला, मांस का ग्राहक और विक्रेता, मांस पकाने वाला, परोसने वाला, या भेंट देने वाला और खाने वाला ; ये सभी एक ही कोटि के घातक (हिंसक) हैं।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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