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________________ श्रेणिक का वेणातट में नन्दादेवी के साथ विवाह, मगध देश की राज्यप्राप्ति २३७ अन्तिम समय नजदीक जान कर अपने पुत्र श्रेणिक को बुला लाने के लिए एक शीघ्रगामी ऊंट वाले को आदेश दिया। ऊंट वाला शीघ्र वेणातट नगर पहुंचा । वहाँ जा कर वह श्रेणिक से मिला और कहा'आपके पिताजी मृत्युशय्या पर पड़े अन्तिम घड़ियां गिन रहे हैं। आपको उन्होंने शीघ्र बला लाने के लिए मुझे भेजा है।' सुन कर श्रेणिक को बहुत खेद हुआ। उसने नन्दादेवी को समझाया और निम्नोक्त मंत्राक्षर लिख कर उसे दे दिया- 'हम सफेद दीवाल वाले राजगृह नगर के गोपाल हैं।' फिर श्रेणिक ने ससुराल वालों से सबसे विदा ले कर वहां से झटपट कूच किया। "पिताजी दुःसाध्य रोग से पीड़ित हैं, कहीं ऐसा न हो जाय कि मेरे जाने से पहले ही मेरी अनुपस्थिति में वे चल बसें, अथवा उन्हें अधिक पीड़ा न हो जाय । इस लिहाज से श्रेणिक ऊंटनी पर बैठ कर झटपट राजगृह पहुंचा। राजा ने जब श्रेणिक को अपने सामने हाथ जोड़े खड़ा देखा तो उसके हर्षाव उमड़ पड़े। फिर स्वर्ण-कलश के निर्मल जल से श्रेणिक का राज्याभिषेक करके उसे मगधदेश का राजा घोषित कर दिया। प्रसेनजित राजा भगवान् पार्श्वनाथ का स्मरण एवं पंचपरमेष्ठीमत्र का जाप करते हुए समाधिपूर्वक मृत्यु प्राप्त करके देवलोक में पहुंचा। श्रेणिक राजा ने सारा राज्यभार संभाला। उधर वेणातट में राजा श्रेणिक द्वारा त्यक्ता नंदादेवी ने गर्भ धारण किया। उस समय उसे एक ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ कि 'हाथी पर चढ़ कर मैं बहुत ही धूमधाम से जीवों को अभयदान देने वाली और परोपकारपरायण बनू।" नन्दादेवी के पिता ने राजा श्रेणिक से विनति को। अत: अंणिकनृप ने वह दोहद पूर्ण कराया। ठीक समय नन्दादेवी ने उसी तरह एक स्वस्थ सुन्दर बालक को जन्म दिया, जिस तरह पूर्वदिशा सूर्य को जन्म देती है । शुभदिवस में उसके दोहद के अनुरूप मातामह ने बालक का नाम अभयकुमार रखा। क्रमशः बड़ा हुआ। निर्दोष विद्याओं का अध्ययन किया । आठ साल का होते-होते बालक अभयकुमार ७२ कलाओं में निष्णात हो गया। एक दिन अभयकुमार अपने हमजोली लड़कों के साथ खेल रहा था। तभी किसी बालक ने उसे रोषपूर्वक ताना मारा-'तू क्या बढ़-बढ़ कर बोल रहा है; तेरे पिता का तो पता नहीं है ।' अभयकुमार ने उसे जवाब दिया -'मेरे पिता का नाम भद्र है ।' लड़के ने प्रत्युत्तर में कहा-'वह तो तेरी माता का पिता है।' अभयकुमार को उस लड़के के वचन नीर की तरह चुभ गए। उसने उसी समय अपनी मां नन्दादेवी से पुछा--मा ! मेरे पिता कौन हैं ?' 'भद्र सेठ तेरे पिता है।' नन्दा ने कहा । 'भद्र तो तुम्हारे पिता हैं, मेरे पिता जो हों उनका नाम मुझे बता दो !' इस तरह पुत्र द्वारा वारबार आग्रहपूर्वक पूछने पर नन्दादेवी ने उदासीन हो कर कहा-'बेटा ! मेरे पिता ने किसी परदेश से आए हुए युवक के साथ विवाह कर दिया था और जब तू गर्भ में था, तब एक ऊँट वाला कहीं से आया था, उसने उनसे एकान्त मे कुछ कहा और झटपट ऊंट पर बिठा कर वह तेरे पिता को ले गया। उसके बाद उसका कोई अतापता नहीं। इसलिए मुझे यथार्थ पता नहीं कि वह कौन था ? कहाँ का था ? उसका नाम क्या था ?' अभय ने पूछा-'माताजी | जाते समय वह कुछ कह गये थे?' तब नन्दा ने वह अंकित मंत्राक्षर ला कर पुत्र को बताया कि "ये अक्षर लिखकर वह मुझे दे गए हैं।" पत्र में अंकित शब्दों को पढ़कर अभयकुमार बहुत खुश हुआ और अपनी मां से कहा---'माताजी ! मेरे पिता तो राजगह के राजा हैं। चलो, अब हम वहीं चलेंगे।' भद्रसेठ से विदा ले कर मां-बेटा सामग्री के साथ राजगृह नगर में पहुंचे। माता को परिवारसहित नगर के बाहर एक उद्यान में बिठा कर अभयकुमार ने थोड़े-से लोगों को साथ ले कर नगर में प्रवेश किया।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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