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________________ अभयारानी द्वारा सुदर्शन को कामजाल में फंसाने का प्रयत्न २१९ साथ सहवास न कर ल तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगी।' इस प्रकार दोनों बढ़-बढ़ कर बातें करती हुई, उद्यान में पहुंचीं। वहाँ दोनों उसी प्रकार स्वच्छन्दता से क्रीड़ा करने लगीं, मानो नन्दनवन में अप्सराएं क्रीड़ा करती हों। क्रीड़ा के श्रम से थक कर दोनों अपने-अपने स्थान पर चली गई। अभयारानी ने अपनी प्रतिज्ञा की बात सर्वविज्ञानपण्डिता, कूटनीतिनिपुण पण्डिता नाम की धायमाता से कही । वह सुन कर बोलीं- 'अरी बेटी ! तेरी यह प्रतिज्ञा उचित नहीं है। तू महात्मा पुरुषों की धैर्यशक्ति से अभी तक अनभिज है। सुदर्शन का चित्त जिनेश्वरों और मुनिवरों की सेवाभक्ति में दृढ़ है। धिक्कार है तेरी निष्फल प्रतिज्ञा को ! साधारण श्रावक भी परस्त्री को अपनी बहन समझता है; तो फिर इस महासत्वशिरोमणि के लिए तो कहना ही क्या ? ब्रह्मचर्यतपोधनी साधु जिसके गुरु हैं, वह महाशील आदि व्रतों का उपासक अब्रह्मचर्य का सेवन कैसे करेगा? जो सदा गुरुकुलवास में रहता हो, सर्वदा ध्यान-मौनपरायण हो, किसकी ताकत है, उसे अपने पाम ले आए या बुला ले ? सर्प के मस्तक के मणि को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना अच्छा, लेकिन ऐसे दृढ़ पुरुष का शील खण्डित करने की प्रतिज्ञाकरना कदापि अच्छा नहीं।' इस पर अभया ने धायमाता से कहा-"मांजी ! किसी भी तरह से एक बार तुम उसे यहां ले आओ। उसके बाद जो कुछ भी करना होगा, वह सब मैं कर लूगी । तुम्हें कुछ भी छल-बल नहीं करना है, सिर्फ उसे किसी उपाय से ले भर आना है।" पण्डिता क्षणभर कुछ सोच कर बोली-"बेटी ! यदि तेरा यही निश्चय है तो एक ही उपाय है, उसे यहां लाने का; पर्व के दिन सुदर्शन धर्मध्यान करनेहेतु किसी खाली मकान में कार्य:त्सर्ग मे स्थिर हो कर रहता है, उस स्थिति में उसे यहां लाया जा सकता है। उसके सिवाय उसे यहां लाना असंभव है।' रानी प्रसन्न हो कर बोली-'यह बिलकुल उपयुक्त उपाय है, तुम्हारा! बस, आज से तुम्हें यही प्रयत्न करना है।' धायमाता ने भी अपने बताये हुए उपाय के अनुसार प्रयत्न करना स्वीकार किया। कुछ ही दिनों बाद जगत् को आनन्द देने वाला कौमुदी-महोत्सव आगया। उत्सव को धूमधाम से मनाने के लिए उत्सुकचित्त राजा ने अपने राज्यरक्षक पुरुषों को आज्ञा दी- "नगर में ढिंढोरा पिटवा कर घोषित कर हो कि ऐसी राजाजा है कि आज कौमुदी-महोत्सव देखने के लिए नगर के सभी स्त्रीपुरुष सजधज कर उद्यान में आएँ।" सुदर्शन ने जब यह राजाज्ञा सुनी तो खेदपूर्वक विचार करने लगा-"प्रातः काल चैत्यवन्दनादि करने के बाद पूरा दिन और रात पौषध में बिताने को मेरा मन उत्सुक हो रहा है, किन्तु राजा की प्रचड आज्ञा उत्सव में शामिल होने की है। अतः क्या उपाय किया जाय ? होगा तो वही, जो होने वाला है।' यों विचार कर सुदर्शन सीधा राजा के पास पहुंचा। भेंट प्रस्तुत करके राजा से विनति की-"राजन् ! कल पर्व का दिन है। मैं आपकी कृपा से चैत्यवन्दनादि करके पौषध करूंगा। इसलिए मुझे उत्सव में शामिल न होने की इजाजत दें।" राजा ने उसकी प्रार्थना मान्य कर ली । दूसरे दिन सुदर्शन ठीक समय पर चैत्यवन्दनादि से निवृत्त हो कर पौषध अंगीकार करके नगर के किसी चौक में कायोत्सर्गपूर्वक ध्यानस्थ खड़ा हो गया। घायमाता को विश्वस्त सूत्रों से पता लगा तो वह अत्यन्त हर्षित होती हुई अभयारानी के पास पहुंची और कहने लगी-'बेटी ! आज अच्छा मौका है, शायद आज तेरा मनोरथ पूर्ण हो जाय । परन्तु आज तू कौमुदीमहोत्सव के लिए उद्यान में मत आना।" 'आज मेरे सिर में बहत दर्द है' यों बहाना बना कर राजा से कह कर रानी अन्तःपुर में ही रुक गई। "स्त्रियों के पास ऐमी ही प्रपंच करने की विद्या होती है।" पण्डिता ने लेपमयी कामदेव की मूर्ति ढक कर रथ में रखवाई, और उसे ले कर राजमहल में प्रवेश किया। चौकीदार के पूछने पर कि 'यह क्या है ?' कूटकपट की खान पण्डिता ने रथ रोक कर उसे
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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