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________________ २०६ योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश चाहिए । पत्नी की बात से उत्तेजित हो कर खर चौदह हजार विद्याधरों को साथ ले कर हाथी की तरह सदलबल वहाँ आ पहुँचा। उसने श्रीराम पर एकदम धावा बोल दिया । लक्ष्मण ने तत्काल ही श्री राम से विननि की -'बडे भाई ! मेरे रहते आप स्वयं का ऐसों के साथ युद्ध करना उचित नही है, आप मुझे इनके साथ युद्ध करने की आज्ञा दीजिए।' इस पर श्रीराम ने कुछ सोच कर कहा--'अच्छा, वत्स ! तेरी प्रबल इच्छा है तो तू खुशी से जा, और युद्ध में विजय प्राप्त कर । परन्तु अगर तुम पर कोई विशेष संकट आ पड़े तो मुझे बुलाने के लिए सिंहनाद कर देना । इस प्रकार हितशिक्षा दे कर लक्ष्मण को भेजा। लक्ष्मण भी अपना धनुष्य ले कर श्रीराम की आज्ञा से युद्धस्थल पर आ डटा। और आमने-सामने की लड़ाई में अपने पंने तीरों से खर के सैनिकों को उसी तरह मार गिराने लगा. जैसे गरुड़ सो को मार गिराता है । युद्ध बढ़ता जा रहा था। जय-पराजय का कोई पता नहीं लग रहा था । इसी बीच चन्द्रणखा अपने पति के पक्ष में मैनिकों की वृद्धि के लिए अपने भाई रावण के पास पहुची । रावण को उत्तजित करने के लिए उसने कहा- "भैया ! तुम्हें पता है, दण्डकारण्य में हमारी जाति की अवगणना करने वाले राम और लक्ष्मण नाम के दो मनुष्य आए हुए हैं। उन्होने तुम्हारे भानजे को यमलोक पठा दिया है । इस बात को सुन कर उसका बदला लेने के लिए तुम्हारे बहनोई अपने छोटे भाई के साथ ले कर लक्ष्मण के साथ युद्ध करने गये हैं । युद्ध अभी जारी है। अपने छोटे भाई के पराक्रम गवं से और अपनी शक्ति के गर्व से फूल कर राम अपनी पत्नी मीता के साथ विलास करने के लिए अपने स्थान पर रह गया है । उस सीता का रूप, लावण्य इतना सुन्दर है कि देवी, नागकुमारी या कोई मानुषी उसकी होड़ नहीं कर सकती। तीनों लोकों में उसके सरीखा रूप मैंने किसी दूसरी स्त्री का नहीं देखा। इनना ही नहीं, सारे देवों और असुरों की देवागनाओं के रूप से भी बढ़कर उसका रूप है। वाणी से उसका बयान करना भी अशक्य है । राजन् ! समुदपर्यन्त इम पृथ्वी पर जितने भी रन्न हैं, वे सब तुम्हारे अधिकार के हैं । अत: बन्धो । जिसकी रूपयम्पदा अपलकनेत्रों से टकटकी लगा कर देखते रहें, ऐसी मनोहारिणी आकृति वाले स्त्रीरत्न को अगर तुम ग्रहण नही कर सके तो रावण ही क्या हुए?" चन्द्रणखा की बातों मे उत्तेजित हो कर रावण तत्काल पुष्पकविमान में बैठा और उसे आज्ञा दी कि हे विमानराज ! जहां जानकी हो, वहां मुझे शीघ्रातिशीघ्र पहुंचा दे।" विमान भी मनोवेग के समान उड़ता हुआ बहुत तेजी से जहां जानकी थी, गहां पहुंचा । अग्नि में डर कर जैसे मिह दूर खड़ा रहता है, वैसे ही उग्रतेजस्वी राम को देख कर रावण डर कर दूर खड़ा रहा। वह मन हो मन सोचने लगा-- "इस प्रकार श्री राम को जीत कर सीता का हरण करना उतना ही कठिन है, जितना कि एक ओर सिंह से मुकाबला करना और दूसरी ओर पानी से लबालब भरी नदी को पार करना। रावण ने अर.लोकनविद्या का स्मरण किया । उमी समय वह किंकरी की तरह हाथ जोड़ कर सामने आ कर खड़ी हो गई । रावण ने तत्काल उसे आज्ञा दी-'सीता का अपहरण करने के लिए आज तुम मुझे सहायता दो।' अवलोकनविद्यादेवी ने कहा-"सर्पराज के मस्तक का मणि ग्रहण करना आसान है मगर राम के साथ बैठी हुई सीता को ग्रहण करना कठिन है, ऐसी हालत में तो इसे साक्षात् देव या असुर भी नहीं ग्रहण कर सकते । इसको ग्रहण करने का सिर्फ एक ही उपाय है -लक्ष्मण के समान सिंहनाद किया जाय, जिसे सुन कर गम लक्ष्मण की सहायता के लिए दौड़ पड़ेंगे ; क्योंकि उन दोनों में परस्पर ऐसा सकेत हुआ है । अतः ऐसा ही करूंगी तो तुम्हारा काम बन जायगा।" यों कह कर अवलोकन विद्यादेवी ने वहां से कुछ दूर जा कर लक्ष्मण का-सा सिंहनाद किया । उसे सुनते ही सीता को वहीं अकेली छोड़ कर गम. लक्ष्मण को सहायता के लिए एकदम दौड़ पड़े। 'मायावी की माया से महान् पुरुष भी बिडम्बना में पड़ जाते हैं।' राम के
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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