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________________ १७० योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश मार गिराते थे । इस तरह बोलने का फल सुन कर गया । अपराधी वसुराजा का जो भी पुत्र राजगद्दी पर बैठता, देवता उसे वसु के आठ पुत्रों को देवों ने मार गिराये । अतः वसुराज के इस प्रकार असत्य जिनवचन-श्रवण करने वाले भव्य आत्माओं को किसी के भी आग्रह दबाब या लिहाज मुलाहिजे में आ कर अथवा प्राणों के चले जाने की आशंका हो तो भी असत्य नहीं बोलना चाहिए। यह है नारद-पर्वतकथा का हार्द !' सज्जनों का हित करने वाला वह सत्यवचन व्युत्पत्ति से यथार्थ होने पर भी अगर दूसरों को पोड़ा देने वाला हो तो उसे भी असस्य की कोटि में ही माना गया है । इसलिये सत्य भी ऐसा न बोले, जिससे दूसरों के हृदय को आघात पहुंचे - न त्या भाषेत परपीड़ाकरं वचः । लोकेऽपि श्रूयते यस्मात् कौशिको नरक गतः ॥ ६१ ॥ अर्थ जिससे दूसरों को पीड़ा हो, ऐसा सत्यवचन भी न बोलो, क्योंकि यह लोकश्रुति है कि ऐसे वचन बोलने से कौशिक नरक में गया था । व्याख्या करने पर मालूम होता है कि वह परपीड़ाकारी है तो उसे असत्य ही हृदय को आघात पहुँचाने वाला वचन नहीं बोलना चाहिए। ऐसे वचन लोकत से तथा अन्य शास्त्रों से भी ऐसा सुना जाना है कि दूसरे को वास्तव में असत्य का ही प्रकार है) बोलने से कौशिक नरक मे गया। कौशिक की कथा सम्प्रदायपरम्परा से इस प्रकार है : कई बार किसी का वचन लोक व्यवहार में सत्य दिखाई देता है; लेकिन परमार्थ से विचार मानना चाहिए। इस प्रकार का बोलने से नरकगति होती है । पीड़ा देने वाले चुभते वचन ( जो प्राणिघातकरूप असत्यवचनों से कौशिक को नरकप्राप्ति कौशिक नाम का एक धनिक तापस अपने गांव से सम्बन्ध नोड़ कर गगानदी के किनारे अकिंचन हो कर रहता था। वहां वह कन्दमूलादि का आहार करता था। लोगों में उसकी प्रसिद्धि ( शोहरत, अपरिग्रही, ममतामुक्त, व सत्यवादी के रूप में हो गई। एक वार उस तापम ने निकटवर्ती गांव को लूट कर आते हुए चोरों को देखा कि सर्प जैसे अपनी बांबी मैं घुसता है, वैसे ही वे चोर आश्रम के नजदीक वन की झाड़ियों में घूम गये। चोरों के पैरों के अनुसार गांव के लोग तापस के आश्रम में आए और तापस से पूछा - 'महात्मन् ! आप तो धर्मतत्व के रहस्य से अनभिज्ञ कौशिक तापस ने कहा- 'इन यह सुनते ही शिकारी जैसे हिरणों पर टूट पड़ते हैं, वैसे ही इसलिये दूसरे को पीड़ा पहुँचाने वाले तथ्य-वचन के रूप में आयुष्य पूर्ण कर नरक में गया । निशान के सत्यवादी हैं, घनी झाड़ियों बताइये वे चोर कहाँ गये ?" चोरों ने प्रवेश किया है ।" में वे चोरों पर टूट पड़े और उन्हें मार डाला । असत्य बोलने से कौशिक तापस अपना थोड़ा-सा भी असत्यवचन अनर्थकारी होने से उसका निषेध करने के बाद अब बड़े भारी असत्य बोलने वाले के लिये खेद प्रगट करते हैं
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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