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________________ किसी भी प्रकार के असत्य बोलने से कई अनपं पैदा होते हैं अर्थ समझदार व्यक्ति प्रमावपूर्वक (अज्ञानता, मोह, अन्धविश्वास या गफलत से) भी असत्य न बोले । जैसे प्रबल अधड़ से बड़े-बड़े वृक्ष टूट कर नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही असत्य महाश्रेयों को नष्ट कर देता है। व्याख्या क्निष्ट आशय ( गलत अभिप्राय) से असत्य बोलने को वात तो दूर रही, अज्ञान, संशय, भ्रान्ति, मजाक, गफलत आदि प्रमाद के वश भी असत्य न बोले । प्रमाद से अमत्य वचन बोलने से वह उसी तरह श्रेयस्कर कार्यों को उखाड फेंकता है, जिस तरह प्रचंड अंधड़ बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ फेंकता है। महर्षियों ने आगम में कहा है --जिस साधक को भूतकाल की बात का, वर्तमान काल के तथ्य का और भविष्य में होने वाली घटना का यथार्थरूप से पता न हो, वह 'यह ही है' इस प्रकार की निश्चयकारी भाषा न बोले । भूत, भविष्य और वर्तमान काल में हुई, होने वाली या हो रही जिस बात के बारे में उसे शंका हो, उसे भी यह इसी तरह है' इस प्रकार की निश्चयात्मक भाषा में न कहे; अपितु अतीत, अनागत और वर्तमान काल में घटित हुए या होने वाले, या हो रहे जिस पदार्थ के बारे में शका न हो, उसके बारे में यह ऐसा है', इस प्रकार कहे । ___इम प्रकार के अमत्य के चार भेद होते हैं-(१) भूतनिहव-जो पदार्थ विद्यमान है, उसका छिपाना या अपलाप करना । जैसे 'आत्मा नहीं है, 'पुण्य-पाप, परलोक आदि कुछ भी नहीं हैं। (२) अभूतसद्भावन--जो पदार्थ नहीं है, या जिस प्रकार का नहीं है, उसे विद्यमान या तथा प्रकार का बताना । जैसे-यह कहना कि प्रत्येक आत्मा सर्वज्ञ है', या 'सर्वव्यापक' है, अथवा 'आत्मा श्यामक चावल के दाने जितना है या वैसा है । (३) अन्तर-एक पदार्थ को दूसरा पदार्थ बतलाना । जैसे-गाय को बल और बल को घोड़ा कहना । (४) गर्हा-सावध, अप्रिय और आक्रोश के वश कोई बात कहना। इस दृष्टि से गर्दा के तीन भेद होते हैं। सावध (पापमय) भावना से प्रेरित होकर कथन-जैसे इसे मार डालो, इसे मजा चखा दो, अप्रियभावना से प्रेरित होकर कथन-जैसे यह काना है, यह डेढ़ है, यह चोर है, यह मुर्दा या मरियल है। आक्रोशवश बोलना-जैसे-'अरे यह तो कुलटा का पुत्र है।' लुच्चे, बदमाश, बेईमान, नीच, हरामजादे ! आदि सम्बोधन भी आक्रोशसूचक है। असत्य वचन सर्वथा त्याज्य हैं', यह बता कर अब असत्य से इहलोक में होने वाले दोषों का विवरण प्रस्तुत करते हैं असत्यवचना: वर-विषादाप्रत्ययादयः। प्रादुःषन्ति न के देषाः कुपच्या व्याधयो यथा॥८॥ __ अर्थ असत्य वचन बोलने से वैर, विरोध, पश्चात्ताप, अविश्वास, राज्य आदि में अमानता, बदनामी आदि दोष पैदा होते हैं। जैसे कुपण्य (बदपरहेजी) करने से अनेकों रोग पैदा हो जाते हैं, वैसे हो असत्य बोलने से कौन-से दोष नहीं हैं, जो पैदा नही होते ? अर्थात् असत्य से मो संसार में अनेक दोष पैदा होते हैं।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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