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________________ स्थूल असत्य के पांच प्रकार १६१ योग्यता वाली कन्या को दुर्गुणी या अयोग्य बताना अथवा अमुक दुर्गुण या अयोग्यता वाली कन्या को गुणी व योग्य बताना । कन्या शब्द से उपलक्षण में कुमार, युवक, वृद्ध आदि सभी द्विपद मनुष्यों का ग्रहण कर लेना चाहिए । I 1 , २ - गो-विषयक असत्य - गाय के सम्बन्ध में भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से असत्य बोलना । जैसे-दुबली पतली, मरियल गाय को हृष्ट-पुष्ट, सबल और सुडोल बनाना, मारवाड़ी गाय को गुजराती बताना या गुजराती आदि को मारवाड़ देश की बनाना अधिक उम्र की बूढ़ी या अधिक बार ब्याही हुई गाय को कम उम्र की, जवान व एक-दो बार ब्याही हुई बताना या इससे विपरोन बताना, कम दूध देने वाली को बहुत दूध देने वाली या इससे विपरीत बनाना गुणवान् या सीधी गाय को दुर्गुणी या मरकनी बताना, या मरकनी एवं दुर्गुणी गाय को सीधी व गुणी बताना । गो शब्द से उपलक्षण से यहां समग्र चौपाये जानवरों सम्बन्धी असत्य समझ लेना चाहिए । ३ – भूमि-विषयक असत्य - भूमि सम्बन्धी झूठ भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में चार प्रकार का समझ लेना चाहिए। जैसे-- अपनी जमीन को पराई कहना या पराई को अपनी कहना, उपजाऊ जमीन को बजर और बजर को उपजाऊ कहना, एक जगह की जमीन के बदले दूसरे जगह की जमीन बताना, अधिक काल की जाती हुई या अधिकृत जमीन को कम काल को जोती हुई या अनधिकृत बताना, बढ़िया जमीन को खराब और खराब को बढ़िया बनाना। जमीन के विषय में लेने, न लेने की भावना के छिपाना। यहां उपलक्षण से भूमि शब्द से भूमि पर पैदा होने वाले पदार्थ, या रुपये, धन, जायदाद, मकानात आदि सभी से सम्बन्धित असत्य के विषय में समझ लेना चाहिए। कोई यहाँ शका कर सकता है कि यहां समस्त द्विपद या ममस्त चतुष्पद अथवा समस्त निर्जीव पदार्थ से सम्बन्धित [असत्य को स्थूल असत्य न बता कर कन्या, गो या भूमि के सम्बन्ध में बोले जाने वाले असत्य का ही निर्देश क्यों किया ? इसका समाधान यों करते हैं कि लोकव्यवहार में कन्या, गो या भूमि के सम्बन्ध में बहुत पवित्र कल्पनाएं है, भारतीय संस्कृति म कन्या ( कुआरी ) निविकारी होने के कारण पवित्र मानी जाती है, गाय और पृथ्वी को 'माता' माना गया है। इसलिए लोकादरप्राप्त इन तीनों के बारे में असत्य बोलना या असत्य बोलने वाला अत्यन्त निन्द्य माना जाता है। इसलिए द्विपद चतुष्पद या निर्जीव पदार्थों को मुख्यरूप से नहीं बताया गया, गौणरूर से तो इन तीनों के अन्तर्गत द्विपद, चतुष्पद या समस्त निर्जीव पदार्थों का समावेश हो जाता है । ४— न्यासापहरण-विषयक असत्य किसी को प्रामाणिक या ईमानदार मान कर सुरक्षा के लिए या सकट आ पड़ने पर बदले में कुछ अर्थराशि ले कर अमानत के तौर पर किसी के पास अपना धन, मकान या कोई भी चीज रखी जाती है, उस न्यास, धरोहर, गिरवी या बंधक कहते है । ऐसे न्यास के विषय में झूठ बोलना, या रखने वाले को कमोवेश बताना अथवा अधिक दिन हो जाने पर लोभवश उसे हड़प जाना, अथवा धरोहर रखने वाला अपनी चीज मांगने आए, तब मुकर जाना, उलटे उसे ही झूठा बता कर बदनाम करना या डांटना फटकारना न्यासापहरण असत्य कहलाता है। यह भी द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव के भेद से चार प्रकार का हो सकता है । ५- कूटसाली विषयक असत्य किसी झूठी बात को गिद्ध करने के लिए झूठी गवाही देना या झूठे गवाह तैयार करके झूठी साक्षी दिलाना कूटसाक्षी विषयक असत्य कहलाता है। हिंसा अमत्य, २१ -
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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