SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगशास्त्र: द्वितीय प्रकाश सिन्धुस्तोमारायाना, जिनपतिरसुरामर्त्यमाधिपानां, यत् तत् प्रतानामधिपतिपदबी यात्यहिंसा किमन्यत् ॥१॥ जैसे पर्वतों में सुमेरु पर्वत, देवों में इन्द्र, मनुष्यों मे चक्रवर्ती, ज्योतिपियो में चन्द्र, वृक्षों में कल्पतरु, ग्रहों मे सूर्य, जलाशयों में समुद्र, असुरों, सुरों और मनुष्यों के अधिपति जिनपति हैं, वैसे ही सर्वव्रतों में अहिंसा अधिपति का पद प्राप्त करती है। अधिक क्या कहें ? इस प्रकार विस्तार से अहिसावत के सम्बन्ध में कह चुके । अब उसके आगे प्रसंगवश सत्यव्रत (सत्याणुव्रत) का वर्णन करते हैं । सत्यव्रत की उपलब्धि झूठ (असत्य) के त्याग के बिना नहीं हो सकती। इसलिए अगत्यवचन का दुष्परिणाम (कुफल) बता कर उसके त्याग के लिए प्रेरित करते हैं मन्मन काहलत्वं मूकत्वं मुखरोगिताम् । वीक्ष्यासत्यफलं कन्यालोकाद्यसत्यमुत्सृजेत् ॥५३॥ अर्थ समझ में न आए, इस प्रकार के उच्चारण के कारण स्पष्ट बोलने को अक्षमता, तोतलापन, मूकता (गूगापन), मुह में रोग पैदा हो जाना आदि सब असत्य के फल हैं, यह जान कर कन्या आदि के सम्बन्ध में असत्य का त्याग करना चाहिए। व्याख्या दूसरे को अपनी बात समझ में न आए, इस प्रकार का हकलाते हए अम्पष्ट उच्चारण करना, तुतलाते हुए बोलना, गूगा होना, मुह में कोई रोग पैदा हो जाना; या दूसरी जीभ पैदा हो जाना, ये सब असत्य बोलने के फल हैं। यह देख कर शास्त्रबल से असत्य का स्वरूप जान कर श्रावक को चाहिए कि वह स्थूल असत्य का त्याग करे। कहा भी है-असत्य वचन बोलने वाला गूगा, जड़बुद्धि, अंगविकल (अपाहिज), तोतला, अथवा जिसकी बोली किसी को अच्छी न लगे, इस प्रकार की अप्रिय बोली वाला होता है, उसके मुंह से बदबू निकलती रहती है । कन्या आदि के सम्बन्ध में जो स्थूल असत्य है, उसका स्वरूप बताते हैं - कन्या-गो - भूगलो , न्यासापहरणं तथा । कूटसाक्ष्यं च पञ्चेति स्थूलासत्यान्यकोर्तयन् ॥५४॥ अर्थ कन्यासम्बन्धी, गोसम्बन्धी, भूमिसम्बन्धी, धरोहर या गिरवी (बन्धक) रखी हुई वस्तु के अपलाप सम्बन्धी और कूटमामी (झूठी गवाही) सम्बन्धी; ये पांच स्थूल असत्य व्याख्या १-कन्याविषयक असत्य-कन्या के सम्बन्ध में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से असत्य बोलना । जैसे--अच्छी कन्या को खराब और खराब कन्या को अच्छी कहना, या एक कन्या के बदले दूसरी कन्या बताना, एक देश या प्रान्त की कन्या को दूसरे देश या प्रान्त की बताना, छोटी उम्र की कन्या को बड़ी उम्र की या बड़ी उम्र की कन्या को छोटी उम्र की बताना। इसी तरह अमुक गुण व
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy