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________________ ११६ योगशास्त्र : द्वितीय प्रकार अर्थ ___ अपने शरीर के किसी भी अंग में यदि सभ को जरा-सी नोक भी चुम जाय तो उससे मनुष्य दुःखी हो उठता है । अफसोस है, वह तीखे हथियारों से निरपराध जीवों का प्राणान्त कैसे कर डालता है ? उस समय वह उससे खर को होने वाली पीड़ा का विचार क्यों नहीं करता? व्याख्या वास्तव में, जो अपनी पीड़ा के समान परपीड़ा को नहीं जानता, वह लोक में निन्दनीय समझा जाता है । पशुओं के शिकार करने के दुर्व्यसनी क्षत्रियों को किसी ने साफ-साफ सुना दिया रसातल में जाय तुम्हारा यह हिंसा में पराक्रम ! जो अधिक बलवान हो कर भी अशरण, निर्दोष और अतिनिर्बल का वध करता है । यह कैसी दुर्नीति है, तुम्हारी ? कसा अन्याय है, निर्दोप प्राणियों पर? बहुत अफसोस है कि यह सारा जगत् अराजक बन गया है । निर्मातु क्रूरकर्माणः अणिमात्मना धृतिम् । समापयन्ति सकलजन्मान्यस्य शरीरिणः ॥२५॥ अर्थ क्रूर कर्म करने वाले शिकारी अपनी भणिक तृप्ति के लिए दूसरे जीव के समस्त जन्मों का नाश कर देते हैं। व्याख्या हिंसादि रौद्रकर्म करने वाले शिकारी आदि अपनी जिह्वा की क्षणिक तृप्ति के लिए, जरा सी जिह्वालालमा की शान्ति के लिए दूसरे जीवों के जन्म समाप्त कर देते हैं। कहने का अर्थ है कि दूसरे जीवों के मांस से होने वाली अपनी क्षणिक तृप्ति के कारण दूसरे जीव का तो सारा जीवन ही समाप्त हो जाता है । यह बड़ी भारी क्रूरता है । स्मृतिकार भी कहते हैं-वह प्राणी, जिसका मांस कर मनुष्य खाता है और वह क्रूर मनुष्य, इन दोनो के अन्तर पर विचार करें तो एक की क्षणभर के लिए तृप्ति होती है, जबकि दूसरे के प्राणों का सर्वथा वियोग हो जाता है। नियस्वेत्युच्यमानोऽपि देही भवति दुःखितः । मार्यमाणः प्रहरणारुणः, स कथं भवेत् ?॥२६॥ अर्थ अरे ! मर जा तू ! इतना कहने मात्र से भी जब जीव दुःखी हो जाता है तो भयंकर हथियारों से मारे जाते हुए जीव को कितना दुःख होता है ? व्याख्या ___ मार देने से ही नहीं, अपितु सिर्फ 'मर जा तू' इतना कहने से ही जीव को मृत्यु के समान दुःख महसूस होता है। सभी जीवों के लिये यह बात अनुभवसिद्ध है; तो फिर भाले, बर्डी बादि शस्त्रों से मारे जाते हुए उस बेचारे जीव को कितना दु:ख होता होगा? सचमुच उसे बड़ा दुःख होता है । जहां
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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