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________________ योगशास्त्र: प्रथम प्रकाश पर आतंक ढहाने वाले तालजंघ का भी विनाश हुआ। (३) लोभ से चारों वर्गों का सर्वस्व हड़प जाने वाले ऐल (पुरूरवा) और सौवीरदेश के अजबिन्दु का विनाश हुआ। (४) मान से परस्त्री को वापिस न करने के कारण रावण और दुर्योधन का विनाश हुआ। (५) मद से अम्भोद्भव, और भूतावमानी कार्तवीर्य अर्जुन का विनाश हुआ। (६) हर्ष से अगस्त्य को प्राप्त न करने से वातापि और हूँ पायन को प्राप्त न करने के कारण श्रीकृष्णजी के समुदाय का नाश हुमा। (३५) इनिय-समूह को वश करने में तत्पर-सद्गृहस्थ को अपने इन्द्रिय-समूह को यथोचित मात्रा में वश में करने का अभ्यास करना चाहिए। जो इन्द्रियों की स्वच्छन्दता का त्याग करता है; उन पर अत्यन्त आसक्ति को छोड़ता है, तथा स्पर्शादि विकारों को रोकता है; वही इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है । ऐसा व्यक्ति महासंपत्ति को प्राप्त करता है। कहा भी है "आपदा कषितः पन्या इग्रियाणामसंयमः । तम्जयः सम्पदां मार्गो, येनेष्टं तेन गम्यताम् ॥" "इन्द्रियों का असंयम विपत्तियों का मार्ग है और उन पर विजय प्राप्त करना संपत्तियों का मार्ग है। इन दोनों में से जो मार्ग ईष्ट (हितकर) लगे, उसी मार्ग से जाओ।" ये इन्द्रियाँ जीवन-सर्वस्व हैं । ये ही स्वर्ग और ये ही नरक हैं । दोनों ये ही हैं। जो इन्हें वश में कर लेता है, उसे स्वर्ग मिलता है और जो स्वच्छन्दतापूर्वक इनको विपरीतमार्ग पर जाने देता है, उसे नरक मिलता है। सर्वथा इन्द्रियनिरोध-धर्म तो साधुओं के लिए ही सम्भव है। यहां तो श्रावकधर्म की भूमिका प्राप्त करने से पहले धर्ममार्गानुसारी सद्गृहस्थ का प्रसंग है। इसलिए यथोचित मात्रा में इन्द्रिय-संयम करना उसके लिए आवश्यक बताया है। इन उपयुक्त पैतीस गुणों से युक्त सद्गहस्थ श्रावकधर्म के योग्य अधिकारी बनता है। इस प्रकार परमाहत श्रीकुमारपाल राजा की जिज्ञासा से आचार्यश्री हेमचन-सूरीश्वररचित 'अध्यात्मोपनिषद्' नामक पट्टबड अपरनाम 'योगशास्त्र' का स्वोपज्ञविवरणसहित प्रथम प्रकाश सम्पूर्ण हुमा।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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