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________________ ५० वर्ष और जीवित रहेगा तथा वह वच्चा (वावा और पिता से अधिक) ७५ वर्ष और जीवित रहेगा; किन्तु उसकी दो वर्ष की छोटी वहन ७८ वर्ष जियेगी, इस कारण वह अपने भाई से तीन वर्ष वड़ी है। इस तरह पांच वर्ष का यह एक ही बच्चा अपने धावा, पिता और दो वर्ष वाली वहन से छोटा भी है और बड़ा भी। उसका यह छोटा होना न कल्पित है, न उसका बड़ा होना अनुमानित है; दोनों ही कथन यथार्थ हैं, वास्तविक हैं; सापेक्ष हैं। ___इस तरह किसी पदार्थ के स्वरूप की छानबीन की जाए तो यह अनेक धर्मात्मक (अनेक रूप का) सिद्ध होता है, एक धर्म रूप ही प्रमाणित नहीं होता; इसलिए जगत् के समस्त पदार्थ अनेकान्त रूप हैं, एकान्त (एक ही रूप) रूप कोई भी पदार्थ गिद्ध नहीं होता। इस प्रकार सूक्ष्म तथा स्थल विचार से अनेकान्लवाद, यानी अनेकान्न का सिद्धान्त यथार्थ, अकाट्य, और तर्कसंगत सिद्ध होता है। जब हम कहते हैं कि 'आत्मा नित्य है', नव हमाग दष्टिकोण (पाइंट ऑफ व्ह्य । मौलिक आत्म-द्रव्य पर होता है, क्योंकि आत्मा अभौतिक द्रव्य है, अत: वह न तो अस्त्र-शस्त्रों मे छिन्न-भिन्न हो सकता है, न अग्नि में जल मकता है; न जल ने गल सकता है और न वायु से मुग्न सकता है। वह अनादि काल में अनन्त काल तक वना रहता है । परन्तु जब हम सांसारिक आवागमन को मुख्य करके आत्मा की पर्याय (भव-दशा) का विचार करते हैं तो आत्मा अनित्य सिद्ध होता है: क्योंकि आन्मा कभी मनप्य-भव में होता है, कभी मरकर पशुपक्षी आदि हो जाता है। इस तरह एक ही आत्मा में नित्यता भी है और अनित्यता भी। पुम्पार्थ मियुपाय' में इसका एक सुन्दर उदाहरण दिया गया है 'एकनाकर्षन्ती, श्लषयन्ती बस्तुतत्वमितरेण । अन्तेन जयति जैनी, नीतिमन्थान नेत्रमिव गोपी' ॥225॥
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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