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________________ के निकट पहुँचा देता है। इस तरह जल जीवन-दाता अमृत-रूप भी है, और मारक विष-रूप भी है। दूष शरीर के लिए सर्वोत्तम पोषक पदार्थ है, तत्काल के उत्पन्न वालक, शिशु का जीवन तो दूध पर ही निर्भर है । किशोर, यौवन, प्रौढ़, वृद्ध अवस्थाओं में भी दूध शरीर का अच्छा पोषण करता है, इसी कारण दूध को अमृत भी कहा जाता है; परन्तु यही दुध यदि अतिसार (दस्त) के रोगी को दिया जाए तो उसके लिए विष जैसा हानिकारक सिद्ध होगा। ऐसे ही विभिन्न दृष्टिकोणों से विभिन्न प्रकार की प्रतीत होने वाली अनेक प्रकार की विशेषताएँ प्रत्येक पदार्थ में एक साथ होती हैं, जैसे-राम राजा दशरथ के पुत्र थे, किन्तु लवणांकुश (लव-कुश) के पिता थे, लक्ष्मण के भाई थे, सीता के पति थे, जनक के जामाता (दामाद) ये, भामण्डल के वहनोई थे। इस तरह एक ही राम पुत्र, पिता, भाई, पति, दामाद, बहनोई आदि अनेक रूप थे । इसी प्रकार प्रायः अन्य प्रत्येक मनुप्य भी पिता, पुत्र, वावा, पोता, पति, पुत्र, श्वसुर, जमाई, साला, बहनोई आदि अनेक सम्बन्धोंका समुदाय होता है। ___ इन अनेक प्रकार की विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक पदार्थ अनेकान्त (अनेके अन्ताः धर्माः यस्मिन् स अनेकान्तः) रूप में पाया जाता है, जो (धर्म) विशेषताएं परस्पर-विरुद्ध प्रतीत होती हैं (जैसे जो पुत्र है, वह पिता कैसे हो सकता है, जो साला है, वह वहनोई कैसे हो सकता है, जो पति है, वह पुत्र कैसे हो सकता है इत्यादि) वे ही विशेषताएं एक ही पदार्थ में ठीक सही तौर पर पायी जाती हैं। पदार्थ की इस अनेक-रूपता (धर्मात्मकता) को प्रतिपादन करने वाला सिद्धान्त अनेकान्तवाद कहलाता है। ___ यदि हम हाथी का चित्र पीछे की ओर से लें, तो उसमें पिछले पैर और पूंछ ही दिखाई देंगे, और यदि सामने से फोटो खीचें तो उसकी सूड, दाँत, आँख, कान, मुख, अगले पैर चित्र में आवेंगे, और
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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