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________________ महावीर-निर्वाण संवत् भगवान महावीर का निर्वाण कव हुआ, इस संबंध में जैनों में गणना की एक अभेद्य परम्परा विद्यमान है और वह श्वेताम्बरों तथा दिगम्बरों में समान ही है। "तित्थोगालोपयन्ना में निर्वाण काल का उल्लेख करते हुए लिखा है 'श्यांग सिद्धिगओ, अरहा तित्थंकरो महावीरो । तं श्यणिभवंतीए, अभिसित्तो पालो शया ॥२०॥ पालग रणो सट्ठी, पुण पण्णसयं वियाणि गंदाणम् । मुरियाणं सद्विसयं, पणतीसा पूस मित्ताणं (त्तस्स) ॥२१॥ बलमित-माणुमित्ता, सट्टा चत्ताय हॉति नहसेणे । गद्दभसयमेगं पुण, परिवन्नो तो सगो राया ॥२२॥ पंचम भासा पंच य, वासा छच्चेव होंति वासस्था । परिनिम्ब अस्सऽरिहतो, तो उत्पन्नो (पश्विनो) रुगोराया ॥६२३॥' (जिम गत में अर्हन् महावीर तीर्थंकर का निर्वाण हुआ, उसी रात (दिन) में अवन्ति में पालक का राज्याभिषेक हुआ। ६० वर्ष पालक के.. १५० नन्दों के, १६० मार्यों के, ३५ पुष्यमित्र के, ६० वमित्र-भानमित्र के, ४० नभ:सेन के और १०० वर्ष गर्दः भिल्लों के बीतने पर शक राजा का शासन हुआ। अर्हन् महावीर को निर्वाण हुए ६०५ वर्प और ५ मास बीतने पर गक राजा उत्पन्न हुआ।) यही गणना अन्य जैन-ग्रन्थों में भी मिलती है। हम उनमें से कुछ नीचे दे रहे हैं (१) श्री बीर नितेवर्षः षभिः पंचोत्तरः शतः । शाक संवत्सरस्यषा प्रवृत्तिभरतेऽभवत् ॥ -मेरुतंगाचार्य रचित 'विचार-श्रेणी' (जैन साहित्य मंशोधक, खण्ड २. अंक ३-४ पृ. ४) (२) हि वासाण एहि पंचहि वासेहि पंच मासेहि । मणिबाग गयत्स उपाज्जिस्सह सगो राया ॥ नेमिचन्द्र रचित 'महावीर चरिय' श्लोक २१६९, पत्र ९४-१।
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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