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________________ ६५ तीर्थंकर के मौन भंग का यह शुभ दिवस श्रावण वदी प्रतिपदा था । इस तरह केवलज्ञान हो जाने पर ६६ दिन तक (वैशाख सुदी दशमी से ६ दिन वैशाख के, ३० दिन ज्येष्ठ और ३० आषाढ़ के ) तीर्थंकर का उपदेश नहीं हुआ। यह दिन 'बीर शासन उदय' के नाम से सिद्ध हुआ । जनता ने इसको वर्ष का प्रारम्भ दिन माना । तव से कई शताब्दी तक भारतीय जनता शुभ कार्य का प्रारम्भ इस दिन किया करती थी तथा वर्ष का प्रारम्भ भी श्रावण वदी प्रतिपदा के दिन मानतो रही । 'सर्वार्द्धमागधीया भाषा मैत्री च सर्वजनता विषया' - ( नंदीश्वर भक्ति - ४२ । तीर्थंकर का उपदेश साधारण जनता की भाषा में होता था ।' प्रत्येक श्रोता उसे सुगमता से समझ लेता था । उस उपदेश में समस्त तात्त्विक बातों का विवेचन था, समस्त जगत् का विवरण था, इतिहास का कथन था, तथा आत्मा के हितकर आहतकर, संसार - भ्रमण, कर्म-वन्धन, कम-माचन, धर्म, अधम, गृहस्थ धर्म, मुनि धर्म, जीवपरिणमन, अजाव-परिणमन, की विशद व्याख्या थी । 'पशुओं को मारकर यज्ञ करना महान् पाप है, उस धर्म समझना भूल है -- इस विषय को ताथकर महावार नं अच्छे प्रभावशाली ढंग से समझाया । वीर-वाणी का प्रभाव विख्यात ब्राह्मण विद्वान् इन्द्रभूति जव तीर्थंकर महावीर का अग्रगण्य शिष्य वन गया, तब जनता पर तथा ब्राह्मण विद्वानों पर इसका क्रान्तिकारी प्रभाव पड़ा। इन्द्रभूति गौतम के समान ही उसके १ 'दिव्वज्मणीए गणिदाभावादी | तत्थापत्ती ? किमट्ठ मोहम्मदण चव ण, गणिदी किण्ण दीदी ? काललब्धीए विणा अमंजस्म देविदस्म तड्ढोयण सत्तीए प्रभावादी ।' -- जय धवला २ ' बालस्त्री मन्द मुर्खाणां नृणां चारिव्यकांक्षिणाम् । प्रतिबोधनाय तत्वशैः सिद्धान्तः प्राकृत: कृतः ॥'
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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