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________________ ૬૬ समयमार कलश टीका एकम्य चको न तया परस्य चिति द्वयोहाविति पक्षपाती। यस्तत्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥३६॥ एकम्य मांतो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपाती। यस्तत्ववेदी व्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥३७॥ एकस्य नित्यो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपाती। यस्तत्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं बलु चिच्चि देव ॥३८॥ एकस्य वाच्यो न तथा परस्य चिति द्वयोढाविति पक्षपाती। यस्तत्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥३६॥ एकस्य नाना न तथा परस्य चिति द्वयो-वितिपक्षपाती । यस्तत्ववेदी व्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥४०॥ एकस्य चेत्यो न तया परस्य चिति दयोहाविति पक्षपाती। यस्तत्ववेदी व्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥४१॥ एकस्य दृश्यो न तथा परस्य चिति द्वयोर्दा विति पक्षपाती। यस्तत्ववेदी च्युतपक्षापातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥४२॥ एकस्य वेद्यो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपाती । यस्तत्ववेदी व्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ॥४३॥ एकस्य भातो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ । यस्तस्ववेदी व्युतपक्षपात स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिञ्चिदेव ॥४४॥ चैतन्य मात्र वस्तु को द्रव्याथिक नय से एसी है या पर्यायाथिक नय से ऐसी है. ऐसा कहना दोनों ही पक्षपात है। ज्ञान यदि अशुद्ध पर्यायमात्र को ग्रहण करता है तो कहता है, कि जोव द्रव्य [कर्मों में] बंधा हुआ है, मुक्त है, कर्ता है, भोक्ता है-आदि । भावार्थ--एक पक्ष तो ऐसा है कि जीव द्रव्य अनादि काल में कर्म के संयोग से एक पर्यायरूप चला आ रहा है, विभावरूप परिणमन कर रहा है. ऐसा व्यक्ति एक बंध पयाय को ही अंगीकार किए है और द्रव्य स्वरूप के पक्ष का विचार नहीं करता। दूसरी ओर, जब द्रव्याथिक नय का पक्ष पकड़ता है तो कहता है कि
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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