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________________ समयसार कलश टीका मवया जंमे विमंडल के उयं महिमंडल में, प्रातपटल तम पटल दिलाते है । तं परमानम को प्रनुभो रहन जोलों, मोमों कहूं दुविधा न कहूं पक्षपात है ।। नय को न लेम परमाल को न परबेस, निक्षेप के बस को विध्वंस होत जानु है। जे जे वस्तु साधक हैं तेऊ तहाँ बाधक है, बाकी रागद्वेष की दशा को कौन बातु है ॥९॥ उपजाति छन्द आत्मस्वभावं परभाव भिन्न मापूर्णमाद्यन्त विमुक्तमेकं । विलीन संकल्प विकल्पजालं प्रकाशयन् शुद्धनयोऽभ्युदेति ॥१०॥ शुद्ध नय से शुद्धस्वरूप जीववस्तु का निरूपण करते हुए, निरुपाधि जीववरत स्वरूपोपदेशरूप प्रकट हुई है। वस्तुस्वरूप सारे पिछले काल से तथा समस्त आगामी काल से रहित है। भावार्थ गद्ध जीव का आदि भी नही, अन्त भी नही । ऐसा जो मन्त्रा स्वरूप है उसका नाम शुद्धनय कहलाता है । जिसका संकल्प अर्थात् गगपरिणाम और विकल्प अर्थात् अनेकनयविकल्परूप ज्ञान की पर्याएँ विलीन हो गयी हैं, ऐसी जीववस्तु है । भावार्थ - समस्त संकल्प-विकल्प से रहित वस्तुस्वरूप का अनुभव सम्यक्त्व है वह जीववस्तु रागादि भावों से भिन्न है और अपने गुणों से परिपूर्ण है तथा आत्मा का निज-भाव है ।। १० ।। डिल्ल छन्द--प्रावि अन्न पूररण स्वभाव संयुक्त है, पर स्वरूप पर जोग कल्पना मुक्त है। सदा एक रस प्रकट कही है जंन में, शुद्धनयातम वस्तु विराजे बॅन में ।।१०।। मालिनी छन्द न हि विदधति बद्धस्पृष्टभावादयोऽमी स्फुटमुपरितरन्तोऽप्येत्य यत्र प्रतिष्ठां । अनुभवतु तमेव द्योतमानं समंताज्जगदपगत मोहीभूय सम्यकस्वभावं ।। ११ ।।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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