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________________ ममयमार कलग टोका मोहम पर न पार, चेतन पर रच्चय, यो धनूर रसपान करत. नर बह विधि नस्चय । प्रब समयमा वर्णन करत, परममता हो. मुझ। अनायाम बनारसीदाय काम, मिटो हा भ्रम को अरुक ॥३॥ मालिनी छन्द उभयनविरोधध्वंसिनिस्यात्पदाई जिनवचसि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः माद ममयसारं ते परंज्योतिरच्च रनवमनयपक्षाक्षुण्णमीक्षन्त एव ॥४॥ अनन्त ममार में भ्रमतं हा जीव एक भव्य गाय हैं और एक अभव्य राशि है। उनमें अभव्य जीव ना नीन काल में भी मोक्ष जाने के अधिकारी नहीं हैं। भव्य जीवों के मोक्ष जाने के काल का परिमाण है। कौन-मा जीव कितना काल बीनने पर मोक्ष जायगा यह तो केवलज्ञानी ही जान मकने है। भ्रमने-श्रमने जब अधंपुद्गलपगवनं रह जाय तब सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है। इसी का नाम काललब्धि है। यद्यपि सम्यक्त्वम्प जीव ही परिणमता है परन्तु काल लब्धि के बिना कोटि उपाय भी करें ना भी जोव मम्यक्त्वरूप परिणमन नहीं कर सकता, ऐसा नियम है । इसमें समझना चाहिए कि सम्यक्त्व वस्तु जतन-साध्य नहीं, सहजरूप है ।' एम भव्यजीवों को, जिन्होंने मिथ्यात्व अर्थात् विपरीतपना वमन १. स्वयं वांतमाहाः के शब्दार्थ हैं-जिनने मोह का स्वयं बमन कर दिया हो । इसमें टोकाकार ने स्वयं का सहज हो' अर्थ करके उसमें से पुरुषार्ष का अंश निकाल ही दिया है और सम्यक्त्व की प्राप्ति को 'काल-लब्धि' के आधीन कर दिया जो न्यायसंगत नहीं मालूम होता। 'काल-लब्धि' का रोपण तो उस पुरुषार्थ से हो होगा जो जीव सम्यक्त्व को प्राप्ति के लिए करेगा। जब किसान ने बोज बोया तो फल की प्राप्ति के लिए स्वयं की काल को मर्यादा बंध गई कि बमुक दिनों-महीनों वर्षों बाद फल निकलेगा। बिना बीज बोने के पुरुषार्थ के काल-लन्धि कुछ नहीं कर सकेगी। -
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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