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________________ २३८ ममयमार कलश टोका कंवलज्ञान व केवनदान का नेजपज है, जानाज के प्रताप की एकरूप परिणाम मा जा प्रकाराम्बाप उमका निधान है और रागादि अशद्ध परिणति को मंट कर होने वाले गदवा परिणाम की बार-बार होने वाली गद्धन्वरूप परिणति का उममें माक्षात् उद्मोन हुआ है। भावार्थ जिम प्रकार रात्रि सम्बन्धी अन्धकार के मिटने पर दिवम उद्योनम्वरूप प्रगट होता है उसी प्रकार मिथ्यान्व रागद्वेष रूप अशट परिणनि को मेटकर गद्धन्द परिणाम विगजमान जीवद्रव्य प्रगट होता है, ओर द्रव्य के परिणाम म्प अतींद्रिय मुख के कारण आकुलना मे रहिनपने में जिमका मर्वम्व मर्यकाल एकरूप है और अमिट है ।।५।। मोहा विनाम अनादि प्रशुद्धता, होइ शुद्धता पोव । ता परिगति को बध कहें, जान क्रिया सों मोव ।। मर्वया -जाके घट अन्तर मिध्यात अन्धकार गयो, भयो परकाशशब्द मकिन भान को। जाको मोह निद्रा घटी ममता पलक फटी, जाने निज मग्म प्रवाची भगवान को। जाको ज्ञान तेज बग्यो उहिम उदार जग्यो, नग्यो मुन्व पोष ममरम मुधा पान को। नाही मृविचक्षण को मंमार निकट प्रायो, पायो तिन मारग मृगम निग्वान को॥५॥ वमन्ततलिका म्याद्वाददोपिलसन्महास प्रकाशे शुद्धस्वभावमहिमन्युदिते मयोति । कि बन्धमोक्षपयपातिभिरन्यभावं. नित्योदयः परमयं स्फुरत स्वभावः ॥६॥ मर्वकाल एक कप में प्रगट जो विद्यमान जीवपदार्थ है वह एक अनुभवम्प प्रगट होओ। पूर्वोक्त विधि में 'मैं गद्ध जीवस्वरूप हं' मा अनुभवरूप प्रगट होने पर अनेक अन्य विकल्पों में क्या प्रयोजन है ? व अन्य ममम्त भाव मोह-गग-द्वेष-बंध के कारण हैं, सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्ष मागं हैं-ऐसे अनेक पक्षों में पड़ने वाले है अर्थात् आने-अपने पक्ष को कहने रूप अनेक विकल्पों वाले हैं।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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