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________________ २०० ममयमार कलश टोका निम्योसोतमत्वमेकमतलालोकं स्वभावप्रमा. प्राग्भारं ममयम्य मारममलं नाद्यापि पश्यन्ति ते ॥४७॥ मिथ्यादाट जाव यद्यपि द्रव्य धारण करता है और बहन में मात्र पनना है परन फिर मा उम माल कर्मा म विमुक्त परमात्मा को नही पाना जा हर समय काममान है. जमा या वंमा ही अखण्ड निविकल्प मनाप है, जिगको नाना नाका म का: उपमा नहीं है जा चनना बम्पक प्रकाश का पज है. आर कममात्र गर्गहन है। भावार्थ मिथ्यादट जाय निवाण पद का नहीं पाता है। मिथ्यादष्टि जांब या मात्र जा जारपना उमममी प्रतीनि करना है कि मैं यानि ई ओर मंग क्रिया मातमार्ग है। अगर मबंधी बात्रिया मात्र का अवलम्बन नने वाला मा जीव, गद ग्वार के प्रत्यक्ष अनभव में अनादि काल में भ्रष्ट है। व्याया करना हा वह अपने आप को एमा मानना है कि अंग पर मात्र माग म बंठा है। टमी आभप्राय मगद्ध ग्याका अनभव सागर पर करना है। भावार्थ - गद्ध ग्यार का जनमव मात्रमाग है. मी प्रतीनि वह नहीं करना है ॥८॥ मया के मिष्याष्टि जीव धरं जिन महा मेव, क्रिया में मगन रहें कहें हम यतो है। प्रतुल प्रवण मल रहित सदा उद्योत, ऐसे मान भावमों विमुख मूढमती है। पागम मम्भाले दोष टाले, व्यवहार भालं, पाले बत पप तथापि अविरती है। पापको कहा मोसमारग के अधिकारी, मोम सों सय रुष्ट दुष्ट दरमती है mun प्रार्या व्यवहारविमूवृष्टयः परमा कलयन्ति नो जनाः तुषबोधविमुग्धबुदयः कलपन्तोह तवं न तन्दुलम् ॥४८ कोई से मिथ्यादष्टि जोव है तिनको यह मूठी प्रतीति हुई है कि दम्य किया मात्र हा माक्षमागं है और ऐसे मुबंपने के वशीभूत 'मुखमान
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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