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________________ शुखात्म-द्रव्य अधिकार २०७ अनुभव करना चाग्य है । सम्यग्दर्शन, सम्यमान, व मध्यावारिस इन नाना म यस्ता मताप आ.माहादजीवका बाप है और यही माझमागं है || ५|| रोहा...मोरयालता भावमो, प्रगट मान को बंग। तापिप्रनुभौ रशा, बरते विगत तांग ।। न जान पर इशा, को एक जो कोई। पिर हं माध मोलमग, मुषी अनुभवी मोई ॥४५॥ शार्दूलविक्रीड़ित को मोशपथी य एष नियतो दग्नप्तिवनात्मकस्तत्रय स्थितिमेति परसमनिश ध्यायेम तं चेतति । तस्मिन्नेव निरन्तरं विहरति ध्यान्तराज्यस्पृशन् सोऽवश्यं समयस्य सारमचिनित्योदयं विन्ति ॥४६॥ जा मम्यग्दृष्टि जाव गुट चनन्य मात्र वस्नु म एकाग्र होकर थरता का प्राप्त होता है तथा गुद्ध चिप का निरन्तर अनुभव करता है और बगवर उमद म्बम्प का हा म्मरण करना है, द चिप मकान होकर अमर धाग प्रवाह पम प्रवनन करना है, वह ममस्त कामों क. उदय महान वाला नाना प्रकार का अगदारणान कामबंधा छारनाहा, मकल कम के विनाम म प्रगट हपगुट चनन्यमात्र का अति हो थार समय में मथा आम्बाद करना है अधांत निवाण पद का प्राप्त हाता है। उस शव निदा का नगन. जान, चरित्र ही मवम्ब है, और वह ज्ञान के प्रत्यक्ष है : उमक जद म्वरूप में पांग्णमन पर मकल कर्मा का क्षय हा है और वह ममम्न विकल्पा मगहन है। श्याथिक दाट मनना जमा है, वैसा ही है, न कुछ कम हुआ है और न कुछ अधिक हुआ है ॥१६॥ दोहा-गरम पर्याय में दृष्टि न रोजे, निविकल्प अनुभव रम पोजे। प्रापममा प्रापमें लोज, सनुपो मेटि अपनपो को। तब विभाव हुने मगन, भुवानमा पर माहि। एक मोल मारग बहै, और इमरो ना६॥ भाईलविक्रीडित ये त्वेनं परिहत्य संवृतिपयप्रस्थापितेनात्मना लिङ्ग द्रव्यमये बहन्ति गमतां तत्वावबोषयुताः ।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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