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________________ ममयमार कलग टीका करित-पाकार ज्ञानको परिणति, वह मान नहीं होय । पलट इम्य भिन्न पर, मानप प्रातम परमोय ॥ जाने मेद भावमो विवाग, गुग्गलमग मम्यकदृष्टि जोय। मृगमको ज्ञान महि.प्राकृति, प्रगट कलंक लोहिकोय ॥२॥ महाकांता शुगनव्यम्बरसमवनाकि स्वभावस्य शेषमम्पाण्यं भवति यदि वा तस्य कि स्यात्स्वभावः । ज्योलमापं म्नपति भुवं नंब तस्यास्ति भूमिमनि मेयं कलयति सदा मेयमस्याम्ति नंव ॥२३॥ जीव को अग्रहण गरिन व और पर म माम्बन्धित जितनी भी जय पात: उन सबको एक गमय में द्रव्य, गण और पर्यायां के भाग जंगी है जमी जानती है परन्तु निम्नय म भगवम्त ज्ञान में गम्बधाप (एक सप) नहीं है. जमे चांद की किरणं फैल कर भूमि को वन करती है, चांद की किरणों के प्रमार के सम्बन्ध में भूमि किरणम्प नहीं होती। भावार्थ-जिस प्रकार चांद को किरणों के फैलने में मारी भूमि श्वेत हो जाती है नब चांद की किरणों का भूमि में जैमा मम्बन्ध होता है उसी प्रकार जान जय वस्तु को जानना है तो भी ज्ञान और जय के सम्बन्ध में एकरूपता नहीं है, ऐसा वस्तु का स्वभाव है। जो ऐसा नहीं मानता उमको युक्ति में इस प्रकार समझाते हैं। शुद्ध द्रव्य अर्थात् सना मात्र वस्तु अपने-अपने स्वभाव में ही रहती है । भावार्य-सत्ता मात्र वस्तु निविभाग, एकरूप है, उसकंदो भाग नहीं होते। यदि अनादि-निधन मत्तारूप वस्तु किसी अन्य सत्तारूप हो जाए तो जो पहले सत्तारूप वस्तु सधी हुई थी उसका जो पहले का स्वभाव था वह अन्य स्वभावरूप हो जाएगा और कि पूर्व सत्ता में से यह नई मत्ता उत्पन्न हुई तो पूर्व सत्ता का विनाश हो जाएगा। भावार्ष-जैसे जीव द्रव्य चेतना सत्तारूप है, निविभाग है तो वह बेतना मता यदि कभी पुद्गल द्रव्य अचेतनारूप हो जाए तो बेतना सता का विनाश होने को कौन रोक सकता है ? सो वस्तु का म्वरूप एंमा तो नहीं है । इसलिए जो द्रव्य जैसा है वैसा ही है अन्यथा होता नहीं। इसीलिए
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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