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________________ समयसार कलश टोका बोलत विचारत न बोले न विचारे कट, मेलको न भाजन पं मेसो न धरत है । ऐसो प्रभु चेतन प्रचेतन को संगति सों, उलट पलट नट बाजी सी करत है ॥ बोहा-नट बाजी विकलप दशा, नांही धनुभो जोग । केवल अनुभौ करनको, निविकल्प उपयोग || सर्वया-जैसे काहू चतुर सर्वारो है मुकत माल, माला की क्रिया में नानाभांति को विग्यान है । क्रिया को विकल्प न देखे पहिरन वारो, मोतिनको शोभामें मगन सुखबान है । १५६ संसे न करे न भजे प्रथवा करेसो भुंजे, और करे और भुंजे सब नय प्रमान है। यद्यपि तथापि विकलपविधि त्याग योग, निरविकलप अनुभी प्रमृतपान है ॥१७॥ उपजाति व्यवहारिकदृशैव केवलं कसं कर्म च विभिन्नमिव्यते । निश्चयेन यदि वस्तु चिन्त्यते व तूं कर्म च सर्वकमिष्यते ॥ १८ ॥ प्रश्न- ज्ञानावरणादि कर्मरूप पुद्गल पिंड का कर्ता जीव है या नहीं है ? उत्तर - कहने मात्र को तो कर्मरूप पुद्गल पिंड का कर्ता जीव है परन्तु वस्तु के स्वरूप का विचार कर तो कल नहीं है। झूठी व्यवहार दृष्टि से ही ऐसा कहते है । कतां और किया गया कार्य भिन्न-भिन्न है अत जोब ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म का कर्ता है ऐसा कहने भर को है। बात तो यूँ है कि रागादि अशुद्ध परिणामों को जीव करता है और रागादि अशुद्ध परिणामां के होने पर पुद्गल द्रव्य ज्ञानावरणादि रूप परिणमन करता है - इस कारण ऐसा कह देते हैं कि ज्ञानावरणादि कर्म जीव ने ही किए परन्तु ऐसा कहना झूठ है। सच्ची व्यवहार दृष्टि से स्वद्रव्य-परिणाम तथा परद्रव्य-परिणामरूप वस्तु का स्वरूप यदि देख तो द्रव्य अपने परिणामों में ही सदाकाल परिणमन करता है अर्थात् जो जीब अथवा पुद्गल द्रव्य जिन अपने परिणामों से व्याप्य व्यापक रूप है उनका वही कर्ता है और परिणाम उस द्रव्य
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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