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________________ शुद्धात्म-द्रव्य अधिकार १८५ इसमें भी साध्य की सिद्धि कुछ नहीं है । उसी प्रकार कर्तृत्व नय के विचार से जीव अपने भावों का करता है और भोक्तृत्व नय के विचार से जिस रूप परिणमन करता है उन परिणामों का भोक्ता है-यह जैसा भी कुछ है वैसा हो हो । इन विचारों में शुद्ध स्वरूप का अनुभव नहीं होता कारण कि ऐसा सब विचारना अशुद्धरूप विकल्प है। इसके विपरीक. अकतत्व नय से जीब अकर्ता है, अभोक्तृत्व नय से भाक्ता नहीं है--से विचारों से भी शुद्ध स्व. रूप का अनुभव नहीं है। अन्य करता है अन्य भोगता है, ऐसा विकल्प, जीव कर्ता है भोक्ता है, ऐसा विकल्प; जीव कर्ता नहीं है भोक्ता नहीं है, ऐसा विकल्प; इत्यादि अनंन नय जनित विकल्प है परन्तु इनमें से कोई भी विकल्प किसी भी काल में शुद्ध वस्तु मात्र जो जीवद्रव्य है उसके शुद्ध स्वरूप के अनुभवरूप स्थापित करवाने में समर्थ नहीं है। भावार्थ-कोई अज्ञानी यदि ऐसा जाने कि यहा ग्रन्थकर्ता आचार्य ने कर्तापने को-अकर्तापने को-भोक्तापन को-अभाक्तापने को बहुत भांति से वणित किया है तो क्या इसमें अनुभव की प्राप्ति अधिक है ? उसका समाधान है कि समस्त नय विकल्पों के द्वारा शुद्ध स्वरूप का अनुभव सवंया नही है। यहां ज्ञान कराने के लिए शास्त्रों में बहत नय तथा युक्तियों करके दिखाया है । शुद्ध चतना तो हमको स्वसवेदन प्रत्यक्ष है, समस्त विकल्पी से रहित है। उस अनन्त शक्ति गभित चंतना मात्र वस्तु की सर्वथा प्रकार हमको प्राप्ति हो। भावार्थ-- निविकल्प का अनुभव उपादय है। अन्य समस्त विकल्प हय है। जैसे कोई व्यक्ति मातियों की माला पिरात समय अनेक विकल्प करता है, वे सब झूठ है । विकल्पों में शोभा उत्पन्न करने की शक्ति नही है । शोभा तो जो माता मात्र वस्तु है उसमें है। इसलिए पहनने वाला पुरुष माती की माला जान कर पहनता है, गुथने के विकल्पों के विचार से नहीं। देखने वाला भी मोतियों की माला जान कर उसकी शोभा देखता है, गूपने के विकल्पों को नहीं देखता। उमी तरह गुद्ध चतना मात्र की सत्ता का अनुभव करना योग्य है। उसमें बहुत विकल्प घटिन होने हैं परन्तु उनकी सत्ता का अनुभव करना योग्य नहीं है ।।१७॥ संबंया-एकमें अनेक हैं अनेक ही में एक है सो, एकनप्रनेक कछ कोन परत है। करता करता है भोगता प्रभोगता है, उपम उपजत मुए न मरत है। . . .. . -
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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