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________________ बंध-अधिकार प्रश्न-क्या मन-वचन-काय के योग भी बना के कर्ता नहीं हैं ? समाधान-यदि मन-वचन-काय के योग बन्ध के कता होते तो तेरहवें गृणस्थान में जहां मन-वचन-काय का योग है वहां भी कम का बन्ध होता। प्रश्न-यदि रागादि अशुद्ध भाव है तो कर्मों का बन्ध है तो क्या मन-वचन-काय के योग की सामन्यं कल नहीं है? समाधान रागादि अशरभाव नहीं है तो कर्म का बन्ध नहीं है.इसलिये मन-वचन-काय के योग की सामथ्यं कुल नहीं है। प्रश्न-पाच इन्द्रिय-स्पर्शन, रमना, घ्राण. नक्ष श्रोत्र-और छठा मन ये सब भी क्या बन्ध के का नहीं हैं , समाधान- सम्यकदष्टि जीव के पाच इन्द्रिया है, मन भी है और इनके द्वारा वह पुद्गल द्रव्य के गृणा को जानने वाला भी है। यदि पांच इन्द्रियों व मन मात्र में कर्म का बन्ध हाना ना सम्यकदाट जीव के भी बन्ध सिड होता। इसलिए अगर गगादि अगदभाव है ना को का बन्ध है। . प्रश्न-तो क्या पांच इन्द्रियां व छठ मन का मामर्थ्य कुछ नहीं है ? . समाधानः-यदि रागादि अशुद्ध भाव नहीं है तो कम का बन्ध नहीं है इसलिये पांच इन्द्रियों व छठं मन की सामथ्यं कुछ नहीं है। प्रश्न-जीव के सबंध वाले एकेन्द्री आदि शरीर और जीव के संबंध से रहित पाषाण, लोहा, मिट्टी, का मल मे विनाश हाना अथवा उनको पीड़ा पहुंचाना भी बन्ध के करने वाले नहीं है ? समाधान-महामनीवर भालिगी मागं चलते है ओर देव संयोग से सक्ष्म जीवों को बाधा होती है। तो यदि जीव के घान होने मात्र में बन्ध होता तो ऐसे मुनीश्वर के भी बन्ध होता। इसलिए गगादि अपर परिणाम हैं तो कर्म का बन्ध है मात्र जीव घात का मामथ्यं कुछ नहीं है ॥२॥ संबंया-कर्मजाल वर्गरणासों जग में न बंधे जीव, बंधे न कदापि मन-वच-काय जोग सों। चेतन प्रवेतन को हिसा मों न बंधे जीव, बंधन अलख पंच विर्ष विर गेगमों। कमसों प्रबंध मिद्ध जोगमों प्रबंध जिन, हिमामों प्रबंध गाघु जाता निवं भोग मों। इत्याविक वस्तु के बिनापसोंग बंधे जोक, एक रागादि पर उपयोग सो १२॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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