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________________ १४२ ममयसार कलश टोका संबंया--मोह मद पाइ जिन्हें मंगागे निकल कोने, याही प्रजानबान बिग्द बहन है। ऐमो बंधवोर विकगल महा जाल मम, जान मन्द करे चन्द गह ज्यों गहन है ।। ताको बन्न भंजिवे को घट में प्रगट भयो, उद्धत उदार जाको उद्यम महत है। मोहै मकित मुर प्रानन्द प्रकर नाहि, निरब बनारमी नमो नमो कान है॥१॥ बग्धरा न कर्मबहुलं जगन्नचलनात्मकं कर्म वा न नंककरणानि वा न चिचियो बन्धकृत् । यदक्यमुपयोगभूः समुपयाति रागादिभिः ___स एव किल केवलं भवति बन्धहेतुन रणाम् ॥२॥ जो चेतनागृण है वही मल वस्तु है। गग-द्वप-मोह रूप अशुद्ध परिणामों से एकपना उसकी उमरूप (बधम्प पारणमाता है। यह अशुद्ध परिणामों के माथ एकपना अन्य किमी की महाय बिना, निश्चय से समस्त संसारी जीव राशि का ज्ञानावरणादि कर्मों के बन्ध का कारण होता है। प्रश्न-बन्ध का कारण इतना ही है या और भी कुछ बन्ध का समाधान-बन्ध का कारण इतना ही है और कुछ नहीं है । प्रश्न-जानावरणादि कमरूप बधने के योग्य तीन सौ नतालीम राज प्रमाण लोककाश के प्रदंगों में घड़े में घी की भांनि भरी हई जो कार्माण वर्गमा है क्या वह भो बन्ध की कर्ता नहीं है ? समाधान यदि रागादि अशुद्ध परिणाम विना कार्माण वगंणा मात्र मे बन्ध होता तो जो मुक्त जीव उनके भी बन्ध होता। प्रश्न-जो रागादि परिणाम है तो जानवरणादि कर्मों का बन्ध है तो क्या कार्माण वर्गणा को मामध्यं कुछ नही है? . . समाधान-यदि रागादि अगढ भाव नही है तो फिर कार्माण वगंगा की सामर्थ्य कुछ नहीं है।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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