SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ममयमार कलश टीका और कालब्धि पाकर अपने गुद म्वरूप परिणमा है, जिसका अविनश्वर प्रकार है, अतीन्द्रिय मुखम्प जिसका परिणमन है और जो उत्कृष्ट है, सब प्रकार सब काल में ओर मा नाक्य में जो निमंल है, साक्षात् शुद्ध है, सदा प्रकागरूप है, निर्विकल्प है। गुड़ जान मा कम हुआ यह कहते हैं-वह जो पुदगल कम का ज्ञानावरणादि कप आम्रव हो रहा था उसका निरोध करके एसा हुआ। ओर वह निगध कम हुआ : शुदम्बाप ज्ञान के प्रगटगने के निरंतर अभ्याम में गुद्ध तन्त्र पयांत गद नन्य वस्तु की माक्षात् प्राप्ति के दाग हा। वह निगंध गग-उप-माहा' अशुद्ध विभाव परिणामों के अमन्यात लोकमात्र भंदा की सना का मन में नाग करता है। भावार्थडम्वरूप का अनुभव उपादेय है ।।८।। मक्या-मे रजमोधी, रज मोधि के दब का, पावक कनक का दाहत उपल को। पंक के गरभ में ज्यों हारिये कनक फल, नीर को उज्वल निनारि डारे मल को। दधि के मया मयि कादमे मावन हो, गजाम मे दूध पोवे त्यागि जल को। तमे जानवन्त मेदज्ञान को मकान माधि, बेरे निज मंपति उच्छेरे पर बल को ।।८।। ||नि षष्टम अध्याय ।।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy