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________________ नवम विनय-समाधि अध्ययन २४५ अर्थ श्रुतसमाधि चार प्रकार की है। जैसे- (१) 'मुझे अत प्राप्त होगा' इसलिए अध्ययन करना चाहिए, (२) 'मैं एकाग्रचित्त होऊंगा' इसलिए अध्ययन करना चाहिए, (३) 'मैं अपनी आत्मा को धर्म में स्थापित करूंगा' इसलिए अध्ययन करना चाहिए, (४) और 'मैं धर्म में स्थित होकर दूसरों को उसमें स्थापित करूंगा' इसलिए अध्ययन करना चाहिए । यह चौथा पद है। इस विषय में जो श्लोक है, उसका यह अर्थ है ___ अध्ययन से ज्ञान प्राप्त होता है, चित्त एकाग्र होता है, धर्म में स्वयं स्थित होता है और दूसरों को स्थिर करता है तथा अनेक प्रकार के श्रत का अध्ययन कर अतसमाधि में रत होता है। चौपाई- तपसमाधि चार परकार, उभय लोकहित तप नहिं धार । कोत्ति-हेतु नहिं तप को धार, कर्म-झरन-हित तप को धार ॥ मरिल्ल .. विविधि गुननि जुत तप में जो लवलीन है. चहत निर्जरा और चाह करि होन है । तप पर पाप पुरातन काटत जात है, तपसमाधि में लग्यो रहत दिनरात है। दोहा- विविधि तपोगण-रत रहे, भवतें होय विराग । करे कर्म की निर्जरा तपसमाधि में लाग ।। अर्थ- तप:समाधि चार प्रकार की है। जैसे (१) इहलोक के लाभ के लिए तप नहीं करे, (२) परलोक के लाभ के लिए तप नहीं करे, (३) कीति, वर्ण, शब्द और श्लोक के लिए, अर्थात् किसी प्रकार की कीत्ति, नामवरी और प्रसिद्धि के लिए तप नहीं करे । (४) किन्तु केवल कर्मों की निर्जरा के लिए तप करे । यह चौथा पद है । इस विषय में जो श्लोक है, उसका अर्थ इस प्रकार है विविधि गुणयुक्त तप में रत रहता हुआ मुनि इहलौकिक और पारलौकिक सुखों के लिए आशा न करे, किन्तु केवल कर्म-निर्जरा के लिए तप करे। इस प्रकार के तप से वह पर्व मंचित कमों को नष्ट कर देता है। अतः साधु तपःसमाधि में सदा संलग्न रहे।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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