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________________ सप्तम वाक्य शुद्धि अध्ययन (५७) १७३ कविस कीनी बस जोई है, करि के परख पूरी बोलत विमल जैन इन्द्रिय-समूह जीति कोह मान माया लोह चारिउँ कसाय टारी जाके प्रतिबन्ध कोऊ रह्यो नहीं कोई है। पूरव के कीने कर्म-मल को चुनन कर आतम सों दूरि करि देत साधु सोई है, यहां जस पावे, उत उत्तम गतीकों जायें, इह परलोक सो अराध लेत बोई है। अर्थ — गुण-दोष की परख कर बोलने वाला, इन्द्रियों को जीतनेवाला, चारों कषायों से रहित, अनिश्रित ( सांसारिक प्रपंचों से मुक्त, मध्यस्थ ) साघु पूर्वकृत पापमल को नष्ट कर इस लोक तथा परलोक दोनों की सम्यक प्रकार आराधना करता है, अर्थात् कर्मक्षय कर सिद्धलोक को प्राप्त करता है । ऐसा मैं कहता हूं। | सप्तम वाक्यशुद्धि अध्ययन समाप्त |
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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