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________________ १५७ सप्तम वाक्यशुद्धि अध्ययन (२२-२३) बोहा- त्यों मानव पशु पछि को, सरपाविक को वापि । 'मोटो' 'मेदुर' 'बध्य' वा, 'पाक्य' न कहे कदापि ॥ 'परिवधित' 'उपचित' तथा, 'प्रीणित' वा 'संजात' । 'महाकाय' आदिक कहे, बोस-रहित जो बात ॥ अर्ष-इसी प्रकार मनुष्य, पशु, पक्षी और सांप को देखकर यह स्थूल (मोटा) है, प्रमेदुर (बहुत चर्बीवाला) है, वध्य (मारने योग्य) है, अथवा वाहन (गाड़ी आदि में जोतने के योग्य) है, अथवा पाक्य (पकाने के योग्य) है, या पात्य (काल प्राप्त है, देवतादि के बलि देने योग्य) है, ऐसा न कहे । यदि कदाचित प्रयोजन वश बोलना ही पड़े तो उसे स्थूल को 'परिवृद्ध', प्रमेदुर को 'उपचित', वध्य या वाह्य को 'संजात' या 'प्रीणित' और पाक्य या पात्य को 'महाकाय' बोल सकता है। (२४-२५) बोहा- त्यों ही 'बोहन-जोग गौ', बलव दमन के जोग । 'भार-बहन, रव-जोग' यों, कहै न मति-घर लोग ॥ 'गौ रसदा' बलदहि युवा, लघु वा कहै महान । अथवा संवाहन कहै, दोस-रहित जो वान ॥ अर्थ-इसी प्रकार प्रज्ञावान् मुनि ये गायें दुहने योग्य हैं, ये बैल दमन करने के योग्य हैं, हल में जीतने के योग्य हैं, भार-वहन करने के योग्य हैं, और रथ योग्य हैं, इस प्रकार न बोले । किन्तु यदि प्रयोजन-वश बोलना ही पड़े तो बैल 'जवान' है, यह कहा जा सकता है, गाय रसदा (दूध देने वाली) है यों कहा जा सकता है । बैल छोटा है, या बड़ा है अथवा धुरा संवहन करने वाला है ऐसा कहा जा सकता है। (२६-२७-८-२६) पोहा- तथा उपवननि, बनानिमें गये गिरिन के माहि। देखि बईम ए वचन, बुद्धिमान कह नाहि ॥ कवितराज-गेह, बम-जोग, तोरन के जोग यह, भवन के जोग, परिघ के जोग जानिये । भागल के जोग, नाव-जोग डोंगी-जोग यह, चौकी वा चंगेरी हल-जोग या कों मानिये। मड़ा जंत्र-लाठी नामो एरन-परन-जोग, मासन-सयन-यान-जोग वा प्रमानि ये। पा को कछ होयगो उपासरे में मतिमान, गातें गोव-हानी वैसी बानी ना बसानिये ॥
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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