SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पचम पिण्डेषणा अध्ययन अर्थ-मुषाजीवी (अनासक्त भाव से जीने वाला) मुनि अरस या विरस, व्यंजन-सहित या व्यंजन-रहित, आर्द्र या शुष्क, मन्थु (वेर का चूर्ण) और कुल्माष (उड़द के वाकले) आदि जैसा भी भोजन विधि पूर्वक प्राप्त हो, उसकी निन्दा न करे । निर्दोष आहार अल्प या अरस होते हुए भी बहुत और सरस होता है । इसलिए उस मुषालब्ध (निरीहवृत्ति से प्राप्त) और दोष-वर्जित आहार को समभाव से खावे । . (१००) चौपाई- दुरलभ जो विनु स्वारथ देई, दुरलभ जो विनु स्वारथ लेई । निस्पृह मन भिक्षुक अरु दानी, सुगति जाहि ए दोनों प्रानी ॥ अर्थ-मुधादायी (निःस्पृह भाव से देने वाला) दाता दुर्लभ है, ओर मुधाजीवी (निःस्पृह वृत्ति से जीवित रहने वाला) पात्र भी दुर्लभ है । मुधादायी दाता, मुधाजीवीसुपात्र ये दोनों सुगति को प्राप्त होते हैं । ऐसा मैं कहता हूं। पिडषणा अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त ।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy