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________________ उत्तमसोच . वही लोभ किसी व्यक्ति के प्रति होता है तो उसे प्रीति या प्रेम नाम दिया जाता है। पंचेन्द्रिय के विषयों के प्रति प्रेम लोभ ही तो है। पंचेन्द्रिय के विषय चेतन भी हो सकते हैं और अचेतन भी। चेतन विषयों के प्रति हुए रागात्मक भाव को प्रेम एवं अचेतन पदार्थों के प्रति हुए रागात्मक भाव को प्रायः लोभ कह दिया जाता है। पुरुष के स्त्री के प्रति पाकर्षण को प्रेम की संज्ञा ही दी जाती है। इस सम्बन्ध में शुक्लजी के विचार और दृष्टव्य हैं : "पर साधारण बोल-चाल में वस्तु के प्रति मन की जो ललक होती है उसे 'लोभ' और किसी भी व्यक्ति के प्रति जो ललक होती है उसे 'प्रेम' कहते हैं । वस्तु और व्यक्ति के विषय-भेद से लोभ के स्वरूप और प्रवृत्ति में बहुत भेद पड़ जाता है, इससे व्यक्ति के लोभ को अलग नाम दिया गया है । पर मूल में लोभ और प्रेम दोनों एक ही हैं।'' परिष्कृत लोभ को उदात्त प्रेम, वात्सल्य आदि अनेक सुन्दरसुन्दर नाम दिये जाते हैं; पर वे सव आखिर हैं तो लोभ के रूपान्तर हीं। माता-पिता, पुत्र-पुत्री आदि के प्रति होने वाले राग को पवित्र ही माना जाता है। कुछ लोभ तो इतना परिष्कृत होता है कि वह लोभ-सा ही नहीं दिखता। उसमें लोगों को धर्म का भ्रम हो जाता है । स्वर्गादि का लोभ इसीप्रकार का होता है। बात बन्देलखण्ड की है, बहुत पुरानी । एक सेठ साहब को उनके स्नेही पंडितजी लोभी कहा करते थे। एक बार सेठ साहब ने पंडितजी से पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाने एवं गजरथ चलवाने का विचार व्यक्त किया तो पंडितजी तपाक से बोले- तुम जैसे लोभी क्या गजरथ चलायेंगे, क्या पंचकल्याणक करायेंगे ? सेठ साहब के बहुत आग्रह करने पर उन्होंने कहा- अच्छा, आप करवाना ही चाहते हैं तो पांच हजार रुपया मंगाइये। पंडितजी का कहना था कि सेठ साहब ने तत्काल हजार-हजार रुपयों की पांच थलियां लाकर पंडितजी के मामने रख दी। उससमय नोटों का प्रचलन बहुत कम था। एक-एक थैली का वजन १०-१० किलो से भी अधिक था। ' चिन्तामणि, भाग १, पृष्ठ ५६
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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