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________________ मनर्क नथा आकर्षक शैली में पाठको नक पहुँचा तो वे झूम उठे। मामान्य पाठकों ने ही नहीं, पूज्य स्वामीजी ने भी उनकी मुक्तकण्ठ में भरपूर सराहना की। स्थान-स्थान में यह मांग आने लगी कि इन्हें शीघ्र ही अनेक भाषाओं में पुम्नकाकार प्रकाशित कर जन-जन तक पहुंचाया जाय, इनका व्यापक प्रचार-प्रमार किया जाय; जिसमें डॉक्टर माहब के चिन्तन का लाभ जन-जन को मिल सके। मन् १९७७ एवं १९७८ में मोनगढ़ में डॉ० भारिल्लजी के ही निर्देशन में प्रवचनकार-प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये गये। इनमे प्रवचनकारी को इन निबन्धो का अध्ययन कराया गया. जिममे शताधिक प्रवचनकारी के माध्यम मे यह बात गांव-गाँव में पहुंचने लगी। __अात्मधर्म के हिन्दी, मगठी, कन्नड और तमिल संस्करण में मम्पादकीय के रूप में दश हजार प्रतिया में प्रकाशित होने के माथ-साथ इन निबन्धो की पुस्तकाकाररूप में हिन्दी मे बाईम हजार एक मो, गृजगती में पांच हजार, मगठी में इकतीस माँ, कन्नड में इक्कीम मो, तमिल में बारह मौ प्रतियां तथा अग्रेजी में बाईम मा प्रतियों प्रकाशित हो चुकी है। माथ ही आत्मधर्म हिन्दी एव गृजगती के ग्राहकों को भेट के रूप में भी दी गई है। हिन्दी भाषा में ५,२०० प्रतियों का यह चतुर्थ संस्करण प्रकाशित हो रहा है । __ इस प्रकार अल्पकाल में ही इन निबन्धा की १०.००० सम्पादकीयो एवं ४०,६०० पुस्तकाकाररूप में अर्थात् कुल ५०.६०० (पचास हजार नौ मौ) प्रतियो का प्रकाशन लेग्वक की लोकप्रियता का प्रत्यक्ष प्रमागग है। लेखक की लोकप्रियता के विषय में और अधिक क्या लिखे - पूर्व में प्रापर्व द्वारा लिखित पुस्तको (जिनकी सूची पृष्ठ १८० पर अंकित है) के अतिरिक्त जिनवरस्य नयचक्रम् (पूर्वाद्ध), गोम्मटेश्वर बाहुबली, चतन्य-चमत्कार एव गाँठ खाल देखी नही -- आपकी नवीनतम रचनाये है। साथ ही अभी-अभी दम्ट द्वारा मत्य की खोज (कथानक) का बडे माइज में भी प्रकाशन किया गया है। आपके द्वारा सम्पादित माहित्य में माक्षमार्गप्रकाशक. प्रवचनरत्नाकर भाग १ एव २. परमार्थवनिका प्रवचन एवं बालबोध पाठमाला भाग १ प्रमुख है । आपकी कृतियां विगत पन्द्रह वो मे पाठ भापायो में ग्यारह लाख की संख्या में प्रकाशित हो चुकी है। आप मात्र लोकप्रिय लेखक ही नही: प्रभावक वक्ता, एक अच्छे सम्पादक, कुशल अध्यापक एव सफल नियोजक भी है। पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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