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________________ 10 धर्म के पलवल अभी तक अपने को मिल का मालिक समझकर मान करता था, अब उसके प्रभाव में अपने को दीन अनुभव करेगा। मिल छूटने से नहीं, पर छोड़ने से तो मान छूट जायगा ? तब भी नहीं, क्योंकि छोड़ने से छोड़ने का मान हो जायगा, मान छोड़ने के लिए उसे अपना मानना छोड़ना होगा। मान का आधार 'पर' नहीं, पर को अपना मानना है। जो पर को अपना माने उसे मुख्यतः मान होता है । अतः मान छोड़ने के लिए पर को अपना मानना छोड़ना होगा। पर को अपना मानना छोड़ने का अर्थ यह है कि निज को निज और पर को पर जानना होगा, दोनों को भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र सत्तायुक्त पदार्थ मानना ही पर को अपना मानना छोड़ना है, ममत्वबुद्धि छोड़ना है । पर मे ममत्वबुद्धि छोड़नी है और रागादि भावों में उपादेयबुद्धि छोड़नी है। इनके छूट जाने पर मुख्यतः मान उत्पन्न ही न होगा, विशेषकर अनन्तानुबंधी मान तो उत्पन्न ही न होगा । चारित्र-दोष और कमजोरी के कारण अप्रत्याख्यानादि मान कुछ काल तक रहेंगे, पर वे भी इसी ज्ञान-श्रद्धान के बल पर होने वाली आत्मलीनता से क्रमशः क्षीण होते जावेंगे और एक दिन ऐसा पायेगा कि मार्दवस्वभावी यात्मा पर्याय में भी पूर्ण मार्दवधर्म से युक्त हो जायगा, मानादि का लेश भी न रहेगा। वह दिन सबको शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त हो, इस पवित्र भावना के साथ मार्दवधर्म की चर्चा से विराम लेता हूँ।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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