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________________ उत्तमक्षमा 0 २१ यदि मालिक के स्वयं के पैर से ठोकर खाकर काच का गिलास फूट जावे तो एकदम चिल्लाकर कहेगा कि इधर बीच में गिलास किसने रख दिया? उसे गिलास रखने वाले पर क्रोध आएगा, स्वयं पर नहीं । वह यह नहीं सोचेगा कि मैं देखकर क्यों नहीं चला ? यदि वही गिलास नौकर के पैर की ठोकर से फूटे तो चिल्लाकर कहेगा-देखकर नहीं चलता, अंधा है। फिर उसे बीच में गिलास रखने वाले पर क्रोध न पाकर ठोकर देने वाले पर आएगा, क्योंकि वीच में गिलास रखा तो स्वयं उसने है। गलनी हमेशा नौकर की ही दिखेगी चाहे स्वयं ठोकर दे, चाहे नौकर के पैर की ठोकर लगे; चाहे स्वयं गिलास रखे, चाहे दूसरे ने रखा हो। यदि कोई कह दे कि गिलास तो आप ही ने रखा था और ठोकर भी आपने मागे, अब नौकर को क्यों डांटते हो? तब भी यही बोलेगा कि इसे उठा लेना चाहिए था, उसने उठाया क्यों नहीं ? उसे अपनी भूल दिख ही नही सकती, क्योंकि क्रोधी 'पर' में ही भूल देखना है, स्वयं में देखने लगे तो क्रोध पाएगा कैसे ? यही कारण है कि प्राचार्यों न कोनी का क्रोध कहा है। क्रोधान्य व्यक्ति क्या-क्या नहीं कर डालता ? सारी दुनियाँ में मनुष्यों द्वारा जितना भी विनाश होता देखा जाता है, उसके मूल में कोधादि विभाव ही देखे जाते हैं। द्वारिका जैसी पूर्ण विकसित और सम्पन्न नगरी का विनाश द्वीपायन मुनि के कोच के कारण ही हमा था। काव के काग्गा मैंकड़ों घर-परिवार टूटते देखे जाते हैं। अधिक क्या कहे - जगत में जो कुछ भी बुग नजर आता है, वह सब क्रोधादि विकारों का ही परिणाम है। कहा भी है : ___'क्रोधोदयाद भवति कम्य न कार्यहानिः'' क्रोध के उदय में किमकी कार्य-हानि नही होती, अर्थात् सभी की हानि होती है। हिन्दी माहित्य के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य गमचन्द्र शुक्ल ने अपने 'क्रोध' नामक निबंध में इसका अच्छा विश्लेषण किया है। ' प्रात्मानुशासन, छन्द २१६
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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