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________________ १६० 0 धर्म के दशलक्षण * वीर (पाक्षिक), मेरठ, दिनांक १ जनवरी १९७६ यह एक ऐसी अनुपम कृति है जिमका स्वाध्याय करके प्रत्येक व्यकि सहज ही प्रात्म-कल्याण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा पाता है। श्रद्धेय डॉक्टर साहब ने दशधर्मों का स्वरूप बहुत विस्तार से, सरल भाषा में प्रस्तुत करके महान उपकार किया है। पुस्तक अनेक ग्रंथियों को खोलने तथा धर्म के नाम पर अज्ञानतारूपी अंधकार को नष्ट करने में सहायक है। एक तरफ जहां हमने धर्म को संकीर्णता के दायरे में जकड़ रखा है, डॉक्टर साहब ने उससे ऊपर उठकर उसे जन-जन के हृदय तक पहुंचाने का प्रयत्न किया है। डॉ. भारिल्ल ने इस प्रकार विश्लेषण किया है कि पुस्तक एक बार हाथ में लेकर उसे छोड़ने को मन ही नहीं करता । डॉ० भारिल्ल एक मर्मज्ञ विद्वान् है । उन्होंने इस ग्रंथ की रचना करके मानव समाज पर महान उपकार किया है। - राजेन्द्रकुमार जैन * वीरवारणी (पाक्षिक), जयपुर, ३ दिसम्बर १९७८, वर्ष ३१, अंक ४-५ ......"डॉ० भारिल्ल ने मरल व रुचिकर भाषा में धर्म के इन लक्षणो का बड़े सुन्दर ढंग से वर्णन किया है। दृष्टान्त द्वारा तत्त्व को समझाना उनकी अपनी विशेषता है जो इस पुस्तक में सर्वत्र देखी जाती है । "क्षमा-मार्दव आदि सभी विषयों में पूजा की पंक्तियों को लेकर पाठक को खूब समझाया है। यह नवीन शैली की कृति अपनी विशेषता रखती है । पाठक इससे अवश्य लाभान्वित होंगे । क्षमावाणी पर अच्छा लिग्वा है। - भंवरलाल न्यायतीर्थ * जैनपथ प्रदर्शक (पाक्षिक), विदिशा, १६ नवम्बर १९७८, वर्ष २, अंक ३६ समाज के जाने-पहिचाने प्रसिद्ध विचारक दार्शनिक विद्वान् डॉक्टर हुकमचंद मारिल्ल की यह कृति विषयवस्तु, भाव, भाषा, शैली आदि मभी दृष्टियो से परिपक्व एव अत्यन्त उपयोगी है। यद्यपि इसकी विषयवस्तु परम्परागत ही है तथापि विषय-विवेचन एवं प्रतिपादन-शैली से वह एकदम नये रूप में प्रस्तुत हुई है ।""इन निबन्धों को पढ़कर हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध निबंधकार प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मनोविकारों पर लिखे गये निबन्धों की याद ताजी हो उठती है। क्षमावाणी का निबन्ध तो अपने ढंग का बिलकुल ही अनूठा है, इसे अद्वितीय भी कहा जा सकता है। - रतनचंद भारिल्ल * सन्मति-वाणी (मासिक), इन्दौर, दिसम्बर १९७८, वर्ष ८, अंक ६ प्रशिक्षण शिविर और दशलक्षण पर्व के अवसरों पर प्रभावक वक्ता और लेखक डॉ० हुकमचंदजी भारिल्ल द्वारा दिये गये विशेष व्याख्यानों का यह सुन्दर संग्रह सभी के लिये उपयोगी है। यह दशलक्षण सम्बन्धी आध्यात्मिक प्रवचन अन्य प्रवचनकारों के लिये मार्गदर्शन-स्वरूप हैं । डॉ० भारिल्ल की प्रवचन शैली पाकर्षक होने से प्राज इन विषयों का विशेष महत्त्व है। - नाथूलाल शास्त्री
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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