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________________ अभिमत 0 १८५ हुअा है। इस परिश्रमसाध्य निरामय पुरुषार्थ की हार्दिक सराहना है । पुस्तक बहुत ही उपयुक्त एवं प्रेरणादायी प्रतीत हुई है। - माणिकचंद भोसीकर * डॉ. देवेन्द्र कुमारजी जैन, प्रोफेसर, इन्दौर विश्वविद्यालय, इन्दौर (म०प्र०) ..."ये लेख प्रात्मधर्म के सम्पादकीय में धारावाहिकरूप से प्रकाशित होते रहे हैं, परन्तु उनका एक जगह संकलन कर ट्रस्ट ने बढ़िया काम किया। इससे पाठकों को धर्म के विविध लक्षणों का मनन, एक साथ, एक दूसरे के तारतम्य में करने का अवसर प्राप्त होगा। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि लेखों की भाषा इतनी सरल और सुबोध है कि उससे आम आदमी भी तत्त्व की तह में पहुंच सकता है। डॉ० भारिल्ल ने परम्परागत शैली से हटकर धर्म के क्षमादि लक्षणों का सूक्ष्म, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। इसलिए उसमें धार्मिक नीरसता के बजाय सहज मानवी स्पंदन है....."। विश्वास है कि यह पुस्तक लोगों को धर्म की अनुभूति की प्रेरणा देगी। - देवेन्द्र कुमार जैन • डॉ० भागचन्द्रजी जैन भास्कर, नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर (महाराष्ट्र) ___ डॉ० भारिल्ल समाज के जाने-माने विद्वान, व्याख्याता हैं । उनकी व्याख्यान किंवा प्रवचन शैली बड़ी लोकप्रिय हो गई है। वही शैली इस पुस्तक में प्राद्योपान्त दिखाई देती है। विषय और विवेचन गंभीर होते हुए भी सर्वमाधारगा पाठक के लिए ग्राह्य बन गया है। प्रतः लेग्वक एव प्रकाशक दोनों अभिनन्दनीय है। - भागचन्द्र जैन भास्कर * महामहोपाध्याय डॉ. हरीन्द्रभूषरणजी जैन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ___ डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल नई पीढ़ी के प्रबुद्ध, लगनशील एवं उच्चकोटि के विद्वान है ।..."धर्म के दशलक्षगा' उनकी अपने ढंग की एक सर्वथा नवीन कृति है । डॉ० भारिल्ल ने अपनी इस रचना में अत्यन्त सरल भाषा में जैनधर्म के मौलिक दश प्रादर्शों का प्राचीन ग्रंथों के उद्धरणो के साथ मोदाहरण विवेचन किया है। दशधर्मों का ऐसा शास्त्रीय निरूपण अभी तक एकत्र अनुपलब्ध था । पर्युषण पर्व में व्याख्यान करने वालो को तो यह कृति अत्यन्त सहायक होगी। -हरीनभूषण जैन • डॉ० प्रेमसुमनजी जैन, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.) __.."डॉ० भारिल्ल ने बड़ी रोचक शैली में धर्म के स्वरूप को स्पष्ट किया है । प्राध्यात्मिक रुचि वाले पाठकों के लिए इस पुस्तक में चिन्तन-मनन की भरपूर सामग्री है । मेरी पोर से डॉ० भारिल्ल को इस सुन्दर एवं मारगर्भित कृति के लिए बधाई प्रेषित करें। - प्रेमसुमन जैन
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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