SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिमत लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं एवं विद्वानों की दृष्टि में प्रस्तुत प्रकाशन - * पं० लाशचन्द्रजी सिद्धान्ताचार्य, वाराणसी (उ० प्र०) श्री भारिल्लजी की विचार-सरणि और लेखन शैली दोनों ही हृदयग्राही हैं । जहां तक मैं जानता हूँ दशधर्मों पर इतना सुन्दर आधुनिक ढंग का विवेचन इससे पहिले मेरी दृष्टि में नहीं पाया, इससे एक बड़े प्रभाव की पूत्ति हुई है। दशलक्षण पर्व मे प्रायः नवीन प्रवक्ता इसप्रकार की पुस्तक की खोज में रहते थे । ब्रह्मचर्य पर अन्तिम लेख मैंने पिछले पात्मधर्म में पढ़ा था, उसमें 'संसार में विषबेल नारी' का अच्छा विश्लेषण किया है। -कलाराचन्द्र * पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री, कटनी (म०प्र०) दशधर्मों पर पंडितजी (डॉ० भारिल्ल) के विवेचन मैंने हिन्दी प्रात्मधर्म में भी पढ़े थे। मुझे उनको पढ़कर उमी समय बहुत प्रसन्नता का अनुभव हुमा था। नई पीढ़ी के विद्वानों में डॉ० भारिल्ल अग्रगण्य है । इनकी लेखनी को सरस्वती का वरदान है, ऐसा लगता है । डॉ० साहब ने साहित्य के क्षेत्र में इस पुस्तक पर सचमुच डॉक्टरी का प्रयोग किया है । दशधर्मों की प्रौषधि का प्रयोग, दविकारों की बीमारी का पूरा प्रॉपरेशन कर, बहुत सुन्दरता से किया है। इतना विशद् सांगोपाङ्ग वर्णन माधुनिक भाषा व आधुनिक शैली में अन्यत्र दिखाई नही देता । पुस्तक आज के युग में नये विद्वानों को दशधर्म का पाठ पढ़ाने को उत्तम है । भाषा प्रांजल है । एक बार शुरू करने पर पुस्तक छोड़ने को जी नहीं चाहता। विषय हृदय को छूता है। कई स्थल ऐसे हैं जिनका अच्छा विश्लेषण किया गया है। - जगन्मोहनलाल जैन शास्त्री * पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्ताचार्य, वाराणसी (उ० प्र०) जिसप्रकार मागम में द्रव्य के प्रात्मभूत लक्षण की दृष्टि से उसके दो लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं, उनके द्वारा एक ही वस्तु कही गई है। उसीप्रकार धर्म के प्रात्मभूतस्वरूप की दृष्टि से प्रागम में धर्म के दशलक्षण निबद्ध किये गये हैं । उनके द्वारा वीतराग-रत्नत्रयधर्मस्वरूप एक ही वस्तु कही गई है, उनमें अन्तर नहीं है । 'धर्म के दशलक्षण' पुस्तक इसी तथ्य को हृदयंगम करने की दृष्टि से लिखी गई है । स्वाध्याय प्रेमियों को इस दृष्टि से इसका स्वाध्याय करना चाहिए। इससे उन्हें धर्म के स्वरूप को समझने में पर्याप्त सहायता मिलेगी। प्रापके इस सफल प्रयास के लिए पाप अभिनन्दन के पात्र हैं। वर्तमान काल में दशलक्षण पर्व को पर्युषण कहने की परिपाटी चल पड़ी है, किन्तु यह गलत परम्परा है । पर्व का सही नाम दशलक्षण पर्व है। हमें देखा-देखी छोड़कर वस्तुस्थिति को समझना चाहिए । "...""पाप अपनी साहित्य सेवा से समाज को इसीप्रकार मार्ग-दर्शन करते रहें। -फूलचन शास्त्री
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy