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________________ उत्तमक्षमा क्षमा आत्मा का स्वभाव है । क्षमास्वभावी आत्मा के आश्रय से प्रात्मा में जो क्रोध के अभावरूप शान्ति-स्वरूप पर्याय प्रकट होती है, उसे भी क्षमा कहते हैं। यद्यपि आत्मा क्षमास्वभावी है तथापि अनादि से आत्मा में क्षमा के अभावरूप क्रोध पर्याय ही प्रकटरूप से विद्यमान है। जब-जब उनमक्षमादि धर्मों की चर्चा चलती है तब-तब उनका स्वरूप अभावरूप ही बताया जाता है। कहा जाता है - क्रोध का अभाव क्षमा है, मान का प्रभाव मार्दव है, माया का प्रभाव पार्जव है - आदि । क्या धर्म अभावस्वरूप (Negative) है ? क्या उसका कोई भावात्मक (Positive) रूप नहीं है ? यदि है, तो क्यों नहीं उसे भावात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता? क्रोध नहीं करना, मान नही करना, छल-कपट नहीं करना, हिंसा नही करना, चोरी नहीं करना, प्रादि न जाने कितने निषेध समा गये हैं धर्म में । धर्म क्या मात्र निषेधों का नाम है ? क्या उसका कोई विधेयात्मक पक्ष नहीं ? यदि धर्म में पर से निवृत्ति की बात है तो साथ में स्व में प्रवृनि की भी चर्चा कम नहीं है । ___ यह नहीं करना, वह नहीं करना, प्रतिबंधों की भाषा है। बंधन से छूटने का अभिलापी मोक्षार्थी जब धर्म के नाम पर भी बंधनों की लम्बी मूची मुनता है तो घबड़ा जाता है। वह सोचता है कि यहाँ पाया था बंधन से छूटने का मार्ग खोजने के लिये और यहाँ तो अनेक प्रतिबंधों में बांधा जा रहा है । धर्म तो स्वतन्त्रता का नाम है। जिसमें अनन्त बंधन हों, वह धर्म कैसा? तो क्या धर्म प्रतिबंधों का नाम है, अभावस्वम्प है ? नही, धर्म तो वस्तु केम्वभाव को कहते हैं, अतः वह सद्भावस्वरूप ही होता है, अभावस्वरूप नहीं। पर क्या करें, हमारी भापा उल्टी हो गई है। क्रोध का प्रभाव क्षमा है, मान का प्रभाव मार्दव है- के स्थान पर हम ऐसा क्यों नहीं कहते कि क्षमा का अभाव क्रोध है, मार्दव का प्रभाव मान है, आर्जव का प्रभाव मायाचार है, अादि ।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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