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________________ उत्तमब्रह्मचर्य ० १५३ इसप्रकार पंचेन्द्रिय के विषयों से प्रवृत्ति की निवृत्ति यदि नास्ति से ब्रह्मचर्य है तो पात्मलीनता अस्ति से। यदि कोई कहे कि शास्त्रों में भी तो कामभोग के त्याग को ही ब्रह्मचर्य लिखा है। हम भी ऐसा ही मानते हैं, इसमें हमारी भूल क्या है ? सुनो ! शास्त्रों में कामभोग के त्याग को ब्रह्मचर्य कहा है, सो ठीक ही कहा है । पर कामभोग का अर्थ केवल स्पर्शन-इन्द्रिय का ही भोग लेना- यह कहाँ कहा? समयसार की चौथी गाथा की टीका करते हुए आचार्य जयसेन ने स्पर्शन और रसना इन्द्रियों के विषयों को माना है काम ; और घ्राण, चक्षु, कर्ण इन्द्रिय के विषयों को माना है भोग । इसप्रकार उन्होंने काम और भोग में पंचेन्द्रिय विषयों को ले लिया है। पर हम इस अर्थ को कहाँ मानते हैं ! हमने तो काम और भोग को एकार्थवाची मान लिया है और उमका भी अर्थ एक क्रियाविशेष (मैथुन) से संबंधित कर दिया है। मात्र एक क्रियाविशेष को छोड़कर पांचों इन्द्रियों के विषयों को भरपूर भोगते हये भी अपने को ब्रह्मचारी मान बैठे हैं। __जब प्राचार्यों ने काम और भोग के विरुद्ध आवाज लगाई तो उनका आशय पाँचों इन्द्रियों के विषयों के त्याग से था, न कि मात्र मैथुनक्रिया के त्याग से । आज भी जब किसी को ब्रह्मचर्यव्रत दिया जाता है तो साथ में पाँचों पापों से निवृत्ति कराई जाती है; सादा खान-पान, सादा रहन-सहन रखने की प्रेरणा दी जाती है; सर्व प्रकार के शृगारों का त्याग कराया जाता है। अभध्य एवं गरिष्ठ भोजन का त्याग आदि बातें पंचेन्द्रियों के विषयों के त्याग की ओर ही संकेत करती हैं। प्राचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में ब्रह्मचर्यव्रत की भावनाओं और अतिचारों की चर्चा करते हुए लिखा है : स्त्रीरागकथाश्रवणतनमनोहरांगनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पंच ॥ अध्याय ७, सूत्र ७ । पसरवाहकरणेत्वरिकापरिगृहितापरिगृहीतागमनानंगक्रीड़ाकामतीवाभिनिवेषा।। प्रध्याय ७, सूत्र २८ ।। इसमें श्रवण, निरीक्षण, स्मरण, रसस्वाद, शृगार, अनंग क्रीड़ा प्रादि को ब्रह्मचर्य का घातक कहा गया है ।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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