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________________ १०६ ० धर्म के दशलक्षण अज्ञानी कहता है कि जब दो माह का ही उपवास करना था तो फिर एक ग्रास भोजन करके भोजन का नाम ही क्यों किया? नहीं करते तो दो माह का रिकार्ड बन जाता। अज्ञानी सदा रिकार्ड बनाने के जोड़-तोड़ में ही रहता है। धर्म के लिए - तप के लिए रिकार्ड की आवश्यकता नहीं। रिकार्ड से तो मान का पोषण होता है। मान का अभिलापी रिकार्ड बनाने के चक्कर में रहता है । धर्मात्मा को रिकार्ड की क्या आवश्यकता है ? मुनिराज़ ने भोजन को जाकर उपवास नहीं तोड़ा; उमसे हो जाने वाले मान को तोड़ा है। एक माह बाद भोजन को इमलिए गये कि वे जानना चाहते थे कि जिस इच्छा को मारने के लिये उन्होंने उपवास किया है, वह मरी या नहीं, कमजोर हई या नहीं? निरंतराय पाहार मिलने पर भी एक ग्रास लेकर छोड़ आये, जिससे पता लगा कि इच्छा का बहुत-कुछ निरोध हो गया है। निर्दोष एकान्त स्थान में प्रमादरहित सोने-बैठने की वृनि विविक्तशय्यासन तथा आत्मसाधना एवं प्रात्मागधना में होने वाले शारीरिक कष्टों की परवाह नहीं करना कायक्लेश तप है। इनमें ध्यान रखने की बात यह है कि काय को क्लेश देना तप नहीं है. वरन् कायक्लेश के कारण आत्माराधना में शिथिल नहीं होना मुख्य बात है। इच्छात्रों का निरोध होकर वीतराग भाव की वद्धि होना तप का मूल प्रयोजन है। कोई भी तप जब तक उक्त प्रयोजन की सिद्धि करता है, तब तक ही वह तप है । यह तो सामान्यरूप से वाह्य नपों की संक्षिप्त चर्चा हुई। इनमें प्रत्येक पृथक-पृथक् विस्तृत विवेचन की अपेक्षा रखता है. किन्तु इसके लिए यहाँ अवकाश नहीं है । अब थोड़े रूप में कतिपय अन्तरग तपों पर विचार अपेक्षित है। जिन अंतरंग तपों के संबंध में बहुत भ्रान्त धारणाएँ प्रचलित हैं, उनमें विनयतप भी एक है। जब भी विनयतप की चर्चा चलती है तब-तव वर्तमान में प्रचलित अनुशासनहीनता को कोसा जाने लगता है। नवीन पीढ़ी के विरुद्ध शिकायतें की जाती हैं। उन्हें उपदेश दिया जाने लगता है कि माज के बच्चों में विनय तो रही ही नहीं। ये लोग न अध्यापक के पैर छुएंगे, न माता-पिता के, आदि न जाने क्या-क्या कहा जाता है ?
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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