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________________ ভ तत्वार्थसूत्र उपजावनोत्पादिलेपाये वेदली को भाव मांगा देवैद्ध खित्क टड्सनांदीनदुःखितनाथनेकी हास्पकर नो कामकथा कामचेष्टा करिहास्पकरना। वङ्गत्तवृथापलाप करना एपरिणामदास्पवेदनी कर्मी का आश्रय करें।वरिपर कोई क्रीडामैतत्परता अन्यकै क्रीडाकी साम ग्रीमैग्धमकर नोडे चित्तक्रियाका वनिनही करनोपरकै पीडाकाअ नावकरनंदिशादिकमै उत्स कप का अनाव सोरतिवेदनीकर्मकात्र अवकाकारणं ॥ श्रन्यजीव निकै अतिप्रगटकरना परकीरतिकाविनार | करना पापीनिकी संगतिकरनोखोटी क्रिया में उत्साह करनाए अरति जी कर्मका आश्रवकरें। अपनेशीकदोयतामविषादी होय चिंतव 'परकैडः खप्रगटकरना अन्यकुंशौकमै देखिश्रानंदधर नांसो वेदनी कर्मका आश्रय का कारण है।।वड रिपनानयरूपपरिणा॥३७ t
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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