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________________ दिदोषक हनीसोकेचलीका अव एवाद है मांसभक्षणादिकनिक निर्दोषक दनो सोश्रतका अर्ववाद है॥ मुनिनिके संधक्श्रश्रुचित्वादिरूपकहनांसो संघकाअवर्णवाद है॥ च्यारि निकायके देवनिकै मोसन क्षणमद्यपानकहना सोदेवावर्णवाद है। इनिक रिदर्शनमोहनीय कर्मका आश्रवहोइहै॥ सूत्रं ॥ कषायोदयांत्ती परिणामश्चारित्रमोहस्यश्यायायनिकेउदयनित तीव्र परणाम होनासो चारित्र मोहनी के आश्वकेकारण है। तथा जगत के कर पकाने में समर्थजेशी लब्तत्तिनकी निंदा करना - आत्मज्ञानी तपस्वीनिक १ निदा करना धर्मका विध्वेस करनाधर्मके साधनमैःश्रेत रायकरनो शीलवा निनिशीलतेचगाव नांदेशवती महाती निकुंक्तनिते चलायमानक् नोमद्यमांसमधु के त्यागीनि के चित्तमैन मउपजावनो चारित्रमै दूषणल गावना के एरुपलिंगनषधरनां लेश पतधारना आप कैपर के कपाय्
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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