SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्वार्थसूत्र वहे ॥ त्रायस्त्रिंशलोकपालवडपी व्यंतरज्योतिकाः |4|| व्यंतस्त्ररयो 22 तिक्कदेव निभेत्रायस्त्रिंशत् अरलोकपालनही है।। सूत्रं ॥ पूर्वयो६ीं शः॥६॥ जवनवासी अरव्यंतर निकी निकायविषेदो यदोयई६ है। सूत्र कायमचीच एसाऐज्ञानात्नवनवासी व्यंत्तख्योतिकरसोधर्मज्ञानताईकेदे वनिकै काय करिमेथुन सेवन है॥ सूत्रं शेषाः स्पर्शरूपरामन: पवीचाएं। सनत्कुमारमहिश्केदेवदेवांगना के ग्रेगका स्पर्शनिमान के ही परमप्री निप्राप्त होईदो बहाबोत्तरलां तव कापिष्टइनिव्यारिवर्गनिके देवदे बागना केरूपमात्र अवलोकनैतैनृप्त होइहै। मुक्रमहा शुक्र सतार सहस्र | किदेवदेवांगनानिकेमधुरगीतनूपणनिकेशन्सु निकरितृप्त होई है। यान नपाएत आरण्यसुत्तस्वर्गकै देवदेवांगना अपनामनमै चितवन करने नकरिवृप्तहोइहै।। प्रेसेंही देवदेवांगना देते। देवनिके स्परस्पिशद्दचितव ॥22
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy