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________________ प्रकास्नवनवासी है॥ अष्टप कारव्यंत्तर है। पंचप्रकारजोकि है॥ ६ादशप्रकार कल्पवासीद॥ सूत्रंत्रसामा निकलायस्त्रिंशत् पारिषदात्मरक्ष लोकपाल नीक पकी एका नियो ग्पक त्विषिका श्चैकशः॥॥॥॥ समस्तदेव निअप रिजा की आज्ञा सोई है ॥ ॥ स्थान आयु वीर्य भोगोपभोगपरिवार करिजे ६ समा नदो||ग्ररुआज्ञाऐश्वर्यनही होयतेइंश्कै पितागुरुउपाध्यायतुल्य सामानि कदेवदे। मंत्री पुरोहिततुव्यतैतीसत्राय स्त्रिंशत्तदेव है।न्। सनानिवासीप रिषददेवहा शस्त्रधारी सनटसमा नआत्मरक्षक देव ||4| कोटपाल ||समान लोकपालदेवदे॥६सिना स्थानीय आनीक देव है ॥ ॥नगर निवार सीसमान प्रकीएकिदेव है। वाहनादिककर्ममेंप्रवर्तने वलिदाससमान आभियोग्पदेवदे॥१॥ चांडालादिसमानइंद्र की सनामैन ही प्रवेशकर ने चाले किल्विषदेव है||रणा असैदेवनिकी निकाय निर्भेदश दशप्रकारकेदे “নি*
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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