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________________ तत्वार्थछत्र देखचन कहनासो सत्य है।पा धर्मको वृद्धिकै अर्थञ्चद्दियनिके ६ वषयपरकायके जीवनिकी विराधना का अनावसो संयम है। क केक्षयकै अर्चित थिए सोत है ॥ ॥ संयमी निकै योझ ज्ञानादिकनिक नसो त्याग है || [])] शरीरादिकनिर्मिममत्व का अभाव सोया किंचन्य है। ली gra स्त्रीनिका स्मरणकथा श्रवण अवलोकनका त्याग सोधाचर्य १०.दाधर्मपरमसंवर के कारणं ॥ सूत्रं ॥ श्रनित्यं ससंसारै पशुश्रवसंवर निर्जरा लोकवैधि दुर्जनधर्मस्वाख्यातत्वाद चेतनमेपेक्षा ए-शरीर इंद्रियविषयभोगपरिनोगव्यदैतेजल दवम् अस्थिर मोहते अज्ञानी) स्थिर मान है। संसार मै कोअवरक्त नहीं है। एक आत्मा का ज्ञान दर्शनस्वना वही ध्रुव है, क * तव करनां सोअनित्यभावना है। जैसे - अनित्यचितघन करनेते हो ॥६॥
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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