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________________ ाचा० १८३१॥ संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंसु भगवं उट्ठाए । निक्खम्म एगया राओबहि चंकमिया मुहुत्तागं ॥६॥ सयणेहिं तत्थुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवा य । संसप्पगा य जे पाणा अदुवा जे पक्खिणो उवचरन्ति ॥७॥ | अदु कुचरा उवचरन्ति गाम रक्खा यसत्तिहत्था य । अदु गामिया उवसग्गा इत्थी इगइया पुरिसाय ॥८॥ भगवान पोते प्रमाद रहित बनीने निद्रा पण वधारे लेता नथी. अने तेज प्रमाणे वार वरसमां अस्थिक गाममां व्यन्तरना उपसर्ग पछी कायोत्सर्गमां रहीने अन्तर्मुहूर्त सुधी स्वप्न देखतां सुधी एकवार निद्रा करी हती त्यारपछी उठीने आत्माने कुशळ अनुष्ठानमां प्रवर्तावे छे अहीँया पण पोते प्रतिज्ञा रहित छे. एटले पोते मनमां इच्छीने स्रुता नथी. (५) वळ ते वीर प्रभु जाणे छे के आ प्रमाद संसार भ्रमण माटे छे. एम जाणीने संयम उत्थानवडे उठीने विचरे छे. जो अन्दर रहेतां निद्रा प्रमाद थाय तो त्यांथी नीकळीने शियाळानी रात विगेरेमां खुल्ली जग्यामां मुहूर्त मात्र निद्रा प्रमाद दूर करवा ध्यानमां उभा रह्या. (६) वळी ज्यां आगळ उत्कुटुक आसन विगेरेथी आश्रय लेवाय तेवा स्थानमां अथवा ते स्थानोवडे ते भगवानने भय करावनारा अनेक जातिना ठन्ड ताप विगेरेथी अथवा अनुकूल प्रतिकूलरूपे परिषह उपसर्गो थया तथा शून्य घर विगेरेमां अहिं नकुळ (साप नोळीया) विगेरे भगवाननुं मांस विगेरे खाता हता, अथवा मसाण विगेरेमां गीध विगेरे पक्षीओ मांस खाता हता, (तो पण भगवान रागद्वेष करता नहोता.) (७) वळी कुचर ते चोर परदार लंपट विगेरे कोइ शून्य घर विगेरेमां भगवानने दुःख देता हता तथा गाम रक्षा करनारा कोटवाळ सूत्रम् ||८३१॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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