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________________ आचा० ॥८०९ ॥ पण पहेला अन्तर्मुहुर्त्तमां विशुद्ध मान वनीने त्रण करण करे छे, ते प्रत्येक अंतर्मुहूर्त्तना छे. ते कहे छे- (१) यथा प्रवृत्त (२) अपूर्व (३) अनिवृत्तिकरण - अथवा चोथी उपशांतथी थाय छे. तेमां यथा प्रवृत्त करणमां दरेक समये अनंत गुण वृद्धिवाळी विशुद्धिने अनुभवे छे. तेमां स्थिति घात, रसघात, गुण श्रेणि, गुण सङ्क्रमण आमांथी कोइ पण होतुं नथी तेज प्रमाणे बीजा अपूर्वकरणमां छे. तेनो परमार्थ कहे छे के तेमां अपूर्व अपूर्व क्रियाने मेळवे छे. तेथी अपूर्व करण छे. तेमां प्रथम समयेज स्थिति घात रस | घात गुणश्रेणि गुण सङ्क्रमण अने अन्य स्थिति बन्ध ए पांच पण अधिकार साथै पूर्वे न होता, अने हवे छे, तेथी अपूर्व करण छे. ते प्रमाणे अनिवृत्तिकरणमा अन्य अन्यने परिणामो उल्लंघता नथी. माटे ते अनिवृत्ति करण छे. एनो सार आ छे के पहले सम जे जीवोए आकरण फरस्यो ते बधामां तुल्य परिणाम छे. ए प्रमाणे वीजा समयोमां पण जाणवुं. अहोंया पण पूर्वे बतावेला स्थितिघात | विगेरे पांचे पण अधिकार साथे वर्त्ते छे. तेथीज आ त्रण करणवडे उपर बतावेलां क्रमवडे अनंतानुबंधीना कषायोने उपशमावे छे. उपशमनुं वर्णन. – जेम धूळ पाणीथी छांटीने लाकडाना थाळावडे कुवो करतां चोंटी जवाथी वायु विगेरेथी उडाडवा छतां | ते धूळ उडती नथी, तेम कर्म धूळ पण विश्शुद्धि भावरुप पाणीवडे 'भिजावी अनिवृत्ति करण थाळावडे हणतां कर्मरज शांत थवाथी उदय उदीरण सङ्क्रम निधत निकाचनारूप करणाने अयोग्य थाय छे. (चीकणो कर्म बंध न थाय) तेमां पण प्रथम समये कर्मदलिक थोडु' उपशांत थाय. अने वीजा तीजा विगेरे समयमां असंख्येय गुण वृद्धिए उपशमता अंतर्मुहूर्त्तमां बधुं शांत थाय छे. आ प्रमाणे एक मतवडे अनन्तानुवन्धीनो उपशम बताव्यो. बीजा आचार्योनो मतभेद. - अनंतानुबन्धीन्री विसंयोजना बतावे छे, तेमां क्षायोपशमिक सम्यग्रदृष्टि जीवो चार गतिमा रहेला सूत्रम् ॥८०९॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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